बिहार

मायावती नहीं चाहतीं लालू का साथ देकर जोखिम लेना

mayawati lalu
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विद्या शंकर राय

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मुखिया लालू प्रसाद यादव की बिहार की राजधानी पटना में 27 अगस्त को होने वाली ’भाजपा भगाओ, देश बचाओ’ रैली से ऐन वक्त पर अपने को अलग कर सबको चौंका दिया है। बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने ही दावा किया कि बिहार में महागठबंधन से नीतीश कुमार के अलग होने व सपा-लालू की नजदीकियों की वजह से मायावती अब इस गठबंधन पर भरोसा नहीं कर पा रही हैं और फिलहाल किसी तरह का जोखिम लेने के मूड में नही हैं।
बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर न करने की शर्त पर बताया, “लालू प्रसाद यादव ने जिस महागठबंधन का सपना देखा था, वह फिलहाल पूरा नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि समाजवादी पार्टी और लालू की नजदीकियों की वजह से मायावती यह तय नहीं कर पा रही हैं कि इस गठबंधन में शामिल हुआ जाए या नहीं।” उन्होंने बताया, “दरअसल, बिहार फार्मूला कामयाब न होने की वजह से ही बहनजी जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहतीं। उप्र में सपा और बसपा एक मंच पर आते हैं, तो इसका क्या परिणाम होगा, यह अभी भविष्य की बात है। हालांकि ये दोनों दल वर्ष 1993 में एक साथ चुनाव लड़ चुके हैं। इसके बाद सपा और बसपा के गठबंधन की सरकार भी बनी थी। लेकिन अभी उस स्तर तक विश्वास का माहौल नहीं बन पा रहा है।”
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उन्होंने बताया, “लालू की रैली को उसी दिन झटका लग गया था, जिस दिन नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़कर भाजपा के साथ जाने का फैसला किया था। यह लालू की पटना रैली के लिए सबसे बड़ा झटका था। इस झटके ने ही बसपा को नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि ’भाजपा भगाओ देश बचाओ’ रैली में शामिल होना सही रहेगा या नहीं। ज्ञात हो कि पूर्व रेलमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने 27 अगस्त को पटना में ’भाजपा भगाओ देश बचाओ’ रैली का आयोजन किया है, जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, कांग्रेस की ओर से गुलाम नबी आजाद सहित तमाम विपक्षी नेता जुटेंगे।
शुरुआती दौर में यह कहा गया है कि इस रैली में नीतीश कुमार के अलावा कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित कई लोग शामिल होंगे। पटना रैली के बहाने ही विपक्षी एकता और महागठबंधन का प्रचार-प्रसार जोर-शोर से किया गया। इससे भी ज्यादा दिलचस्प यह था कि अगर पटना में होने वाली रैली में अखिलेश और मायावती एक मंच पर होते तो फिर वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में उप्र में एक अलग तस्वीर दिखाई देती।
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वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उप्र में कांग्रेस दो, बसपा शून्य और सपा को पांच लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। ऐसे में इस एकता को खासतौर पर लोकसभा चुनाव की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा था। बसपा के पदाधिकारी की मानें तो मायावती पटना की रैली में भले ही शामिल न हो रही हों, लेकिन गुजरात चुनाव से पहले वह बड़े पैमाने पर जनसभाएं करेंगी। वैसे इस बात की संभावना है कि गुजरात के बलसाड में कांग्रेस की प्रस्तावित संयुक्त रैली में मायावती शामिल हो सकती हैं। इधर बसपा के अन्य सूत्रों का कहना है कि मायावती दलितों के मुद्दे पर ही राज्यसभा से इस्तीफा दे चुकी हैं। इसलिए दलित एजेंडे पर 18 सितंबर से वह पूरे उप्र में भी मंडलीय स्तर पर जनसभाएं शुरू करेंगी।
बीबीसी के पूर्व पत्रकार और नार्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक के संपादक दुर्गेश उपाध्याय ने बताया, “मायावती सीटों के बंटवारे पर रुख स्पष्ट होने के बाद ही रैली में जाने की बात कर रही हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मायावती इस बात को बखूबी जानती हैं कि इस तरह के मोर्चे में शामिल होकर या रैली में हिस्सा बनकर तब तक कोई लाभ नहीं होने वाला जब तक सीटों के तालमेल पर कोई सहमति न बन जाए।” जाहिर सी बात है कि मायावती अपना वजूद बचाकर रखना चाहती हैं। वह ये तो चाहती हैं कि विपक्षी एकता में उनकी हिस्सेदारी हो, लेकिन वह स्पष्ट हो। बिहार में नीतीश और लालू के बीच गठबंधन का फार्मूला टूटने के बाद वह जल्दबाजी में कोई भी कदम उठाना नहीं चाहतीं।

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