किस बला का नाम है ईवीएम
आज देश में EVM एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिसे नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। जैसा कि हम सभी जानते हैं की EVM से चुनाव होना लोकतंत्र के लिए बहुत ही घातक है।
जर्मनी में एक साधारण व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में जाकर EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है और वहाँ पर EVM हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है। और हमारे यहाँ पूरा विपक्ष मिलकर भी EVM बैन नहीं करा सकता है।
मुझे बड़े ही अफ़सोस कि साथ ये बताने में दुःख होता है कि सुप्रीम कोर्ट में 21 याचिकाएं EVM बैन करने को लेकर दी जाती हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट उन सारी याचिकाओं को ख़ारिज कर देता है।
चुनाव अयोग EVM को लेकर सभी विपक्षी दलों की राय जानने के लिए एक मीटिंग बुलाता है, जिसमें उपस्थित 32 लोगों में से 29 कहते हैं कि EVM से चुनाव ना होकर चुनाव बैलेट पेपर से होना चाहिए। लेकिन चुनाव अयोग फिर भी चुनाव EVM से ही कराता है।
बेंगलुरू का एक व्यक्ति ओंकार सिंह EVM बैन कराकर लोकतंत्र बचाने के लिए 6500 किलोमीटर की पैदल यात्रा करता है, लेकिन इससे भी कुछ हासिल नहीं होता ( मैं यहाँ प्रवासी मज़दूरों के हज़ारों किलोमीटर पैदल चलने की बात नहीं करूँगा क्योंकि मुझे अभी EVM के बारे में बात करनी है)
सुप्रीम कोर्ट में EVM की गड़बड़ी को लेकर बहुत सारे केस या तो पेंडिंग पड़े हैं या ख़ारिज कर दिए गए हैं। एक केस तो जनसंख्या से ज़्यादा वोटिंग का है। हद तो इस बात की है 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने खुद आदेश जारी किया था कि हर एक चुनाव क्षेत्र के 5 EVM के रिज़ल्ट को VVPAT से मिलाया जाएगा। चुनाव होने के बाद किसी भी चुनाव क्षेत्र के EVM के रिज़ल्ट को VVPAT से मिलाया भी नहीं गया और शपथग्रहण समारोह भी हो गया। ये केस भी कोर्ट में पैंडिंग है।
चुनाव अयोग ने कहा था कि EVM को री प्रोग्राम नहीं किया जा सकता। चुनाव अयोग के इस झूट को भी बेनक़ाब किया गया। RTI के द्वारा मिली जानकारी से पता चला है कि EVM को री प्रोग्राम किया जा सकता है।
जब आज सभी विकसित देश EVM को बैन करके बैलेट पेपर से चुनाव करा रहे हैं तो हम क्यों नहीं ऐसा करा सकते? ऐसा क्या है जो EVM के बारे में वो जानते हैं हम नहीं ????
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अमन राज की फेसबुक वॉल से