उत्तराखण्डवासियों ने लखनऊ में मनाया लोकपर्व हरेला
उत्तराखण्ड महापरिषद के अध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट, संयोजक दीवान सिंह अधिकारी, महासचिव हरीश चन्द पंत आदि ने उत्तराखण्ड महापरिषद लखनऊ की ओर से उत्तर प्रदेश के लखनऊ में निवास कर रहे सभी उत्तराखण्डी परिवारों को हरेला की शुभकामनाएं दीं।
देवभूमि सामाजिक एवं सांस्कृतिक समिति कल्याणपुर लखनऊ के अध्यक्ष खुशहाल सिंह बिष्ट ने कहा कि- तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिले, आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले।
हिमालय में हिम रहने और गंगा जमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो। उत्तराखण्ड के लोक पर्व हरेला पर जब सयानी और अन्य महिलाएं घर-परिवार के सदस्यों को हरेला शिरोधार्य कराती हैं तो उनके मुख से आशीष की यह पंक्तियाॅ बरबस उमड़ पडती हैं।
घर परिवार के सदस्यों से लेकर गाॅव समाज के खुशहाली के निमित्त की गई इस मंगल कामना में हमें जहाॅ एक ओर जीवेद् शरद शंतम् की अवधारणा प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर इस कामना में प्रकृति व मानव के सह अस्तित्व और प्रकृति संरक्षण की दिशा में उन्मुख एक समद्ध विचारधारा भी साफ तौर पर परिलक्षित होती दिखाई देती है।
आखिर प्रकृति के इसी ऋतु परिवर्तन एवं पेड-पौधों, जीव जन्तु, धरती, आकाश से मिलकर बने पर्यावरण से ही तो सम्पूर्ण जगत में व्याप्त मानव व अन्य प्राणियों का जीवनचक्र निर्भर है।
लखनऊ में निवास कर रहे समस्त उत्तराखण्ड के लोग हरेला पर्व को उमंग और उत्साह के साथ मनाते आ रहे हैं। परम्परा के अनुसार पर्व नौ अथवा दस दिन पूर्व पत्तों से बने दोने या रिंगाल की टोकरियों में हरेला बोया जाता है। जिसमें उपलब्धतानुसार पाॅच अथवा सात से नौ प्रकार के धान्य यथा धान, मक्का, तिल, उडद, गहत, भट्ट, जौ व सरसों के बीजों को बोया जाता है।
देवस्थान में इन टोकरियों को रखने के उपरांत रोजाना इन्हें जल के छीटों से सींचा जाता है। दो तीन दिन में ये बीज अंकुरित होकर हरेले तक सात-आठ इंच लम्बे तृण के आकार पा लेते हैं। हरेले पर्व की पूर्व संध्या पर इन तृणों की लकडी की पतली टहनी से गुडाई करने के बाद विधिवत पूजन किया जाता है।
कुछ स्थानों में इस दिन चिकनी मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश-कार्तिकेय के डिकारे (मूर्तियाॅ) बनाने का भी रिवाज है। इन अलंकृत मूर्तियों को भी हरेले की टोकरियों के साथ रखकर पूजा जाता है। हरेला पर्व के दिन देवस्थान में विधि-विधान के साथ टोकरियों में उगे हरेले के तृणों को काटा जाता है।
इसके बाद घर-परिवार की महिलाएं अपने दोनों हाथों से हरेले के तृणों को दोनों पॉंव व घुटनों व कंधों से स्पर्श कराते हुए आशीर्वाद युक्त शब्दों के साथ बारी-बारी से घर के सदस्यों के सिर पर रखती हैं। इस दिन लोग विविध पहाड़ी पकवान बनाकर एक दूसरे के यहाॅ बाॅटते हैं। गाॅव में इस दिन अनिवार्य रूप से फलदार या छायादार कृषि उपयोगी पेडों का रोपण करने की परम्परा है।
लोक मान्यता है कि इस दिन पेड़ की टहनी मात्र रोपण से ही उसमें जीवन पनप जाता है। कुल मिलाकर देखा जाय तो हरेला पर्व में लोक कल्याण की एक अवधारणा निहित है। यह लोकपर्व हमें प्रकृति के करीब आने का सार्थक सन्देश देता है।
लखनऊ में भी सभी लोग इस पर्व को बडी धूम धाम से मनाते हैं। संस्था के सचिव भरत सिंह बिष्ट ने महापरिषद के लोगों को हरेला भेंट किया। इस लोक पर्व की लखनऊ में निवास कर रहे समस्त उत्तराखण्ड वासियों को उत्तराखण्ड महापरिषद द्वारा शुभकामनाएं और ढ़ेर सारी बधाई दी गई।