मानवता की मूर्ति सावला जैसे लोग ही हैं।
करीब तीस साल का एक युवक मुंबई के प्रसिद्ध टाटा कैंसर अस्पताल के सामने फुटपाथ पर खड़ा था।
युवक उस अस्पताल की सीढिय़ों पर मौत के द्वार पर खड़े मरीजों को बड़े ध्यान से देख रहा था, जिनके चेहरों पर दर्द और विवशता का भाव स्पष्ट नजर आ रहा था। वहां मौजूद रोगियों में से अधिकांश दूर-दराज के गांवों के थे, जिन्हे यह भी नहीं पता था कि क्या करें, किससे मिले?
इन रोगियों के साथ उनके रिश्तेदार भी परेशान थे। यह दृश्य युवक को परेशान करने लगा। वह भारी मन से घर लौटा। उसने खुद-से वादा किया कि इनके लिए कुछ करना है। उसकी रातों की नींद उड़ चुकी थी।
युवक ने अपने होटल को किराये पर देकर कुछ पैसा उठाया। इन पैसों से उसने ठीक टाटा कैंसर अस्पताल के सामने एक भवन लेकर धर्मार्थ कार्य (चेरिटी वर्क) शुरू किया। उसकी यह गतिविधि अब 27 साल पूरे कर चुकी है और नित्य प्रगति कर रही है। उसकी चेरिटेबल संस्था कैंसर रोगियों और उनके रिश्तेदारों को निशुल्क भोजन उपलब्ध कराती है।
तकरीबन पचास मरीजों की सेवा के लक्ष्य से शुरू किए गए इस कार्य में सेवा-लाभार्थियों की संख्या लगातार बढ़ती गई। साथ-साथ मदद के लिए हाथ भी बढऩे लगे। सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम में सेवा कार्य लगातार चलता रहा। खुद से किये पवित्र वादे को युवक ने चुनौती मानकर पूरी निष्ठा से निभाया।
इस पवित्र चुनौती को स्वीकार करने वाली शख्सियत का नाम है, हरकचंद सावला।
इस काम को सफलता के साथ संगठित करने के बाद हरकचंद सावलाजी ने जरूरतमंदों को निशुल्क दवा की आपूर्ति करनी शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने मेडीसिन बैंक बनाया, जिसमें तीन डॉक्टर और तीन फार्मासिस्ट स्वैच्छिक सेवा देते हैं। इतना ही नहीं कैंसर पीडि़त बच्चों के लिए खिलौनों का एक बैंक भी खोल दिया गया है। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि सावला जी द्वारा कैंसर पीडि़तों के लिए स्थापित ‘जीवन ज्योत कैंसर केअर एंड रिलीफ ट्रस्ट’ आज 60 से अधिक सेवा-प्रकल्पों पर सफलता पूर्वक काम कर रहा है।
ट्रस्ट इसी के साथ खिचडी घर, ड्रग बैंक, ट्वाय्ज बैंक, होम्योपैथिक चेरीटेबल डिस्पेन्शरी, ऐलोपैथिक चेरीटेबल डिस्पेन्शरी एवं ‘जीवन पथ” के नाम से कैसर मरीजों एवं उनके परिवारीजनों के लिए मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी तीन भाषाओं यथा हिन्दी, अंग्रेजी एवं गुजराती में करता है, जिसकी 15000 प्रतियां मुफ्त में प्रसारित की जाती हैं।
ट्रस्ट की आगे की योजना में सम्मलित हैं, हल्दी दूध योजना,सिक बेड सर्विस, मुफत एम्बूलेन्स, जीव दया आदि। ट्रस्ट स्टेट आफ दी आर्ट टेक्नोलॉजी पर कसारा में 50 एकड़ भूमि, जो समुद्र तल से 2000 फीट की उंचाई पर सहयाड्रिस पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित है, पर 100 बेड का कैंसर अस्पताल, कैंसर की लास्ट स्टेज पर पड़े मरीज के लिए बनवा रहा है। इसी कॉम्पलेक्स में 100 बेड का ओल्ड ऐज होम, जहां 100 गायों की गौशाला भी होगी का निर्माण कराया जा रहा है।
57 साल की उम्र में आज भी सावला जी की ऊर्जा, उनका उत्साह, 27 साल पहले जैसा ही है, वे समर्पित भाव से डटे हुए हैं। सहज ही मानवता के लिए उनके योगदान को नमन करने का मन करता है। 10 से 12 लाख कैंसर रोगियों को मुफ्त भोजन कराने वाले सावलाजी हमारे रियल हीरो हैं। भगवान ने उनका चयन किया है।। पता नहीं, सावला जी जैसे लोग मीडिया से कैसे छुपे रह जाते है! यहां यह भी जान लीजिए कि गूगल के पास फिलहाल तक सावला जी की एक तस्वीर भी नहीं थी।
भगवान हमारे आसपास ही रहते हैं। मायावी ठगों के बीच उन्हें पहचान लेना ही मानों परीक्षा में उत्तीर्ण होना है। बीते 27 साल से कैंसर रोगियों और उनके रिश्तेदारों को हरकचंद सावला के रूप में जैसे सीधे भगवान का ही सहारा मिल गया है।
यहॉं इसका भी जिक्र करना आवश्यक है कि सावला जीे के इस पुनीत कार्य में डॉ0 कौशिक गाडा, सीए नवीन शाह, डॉ0 नेहा सिंह, आप्टोमीट्रिस्ट निर्मल मारूू, बिपिन दानी, हेमाबेन वीरा और डॉ0 ईला नरसाना का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
कामना है कि हरकचंद सावला जी दीर्घायु हों, उनको उनके हिस्से की प्रसिद्धि मिले, सम्मान मिले, ताकि ऐसे कार्य करने वालो को भरपूर बढावा मिले, सपनीली साकारत्मकता को उत्साह मिले।
आंशिक रूप से सम्पादित