मुख्यमंत्री योगी के आदेश को रौंदता उनका ही अधिकारी
सूचना विभाग के नवीन भवन निर्माण कार्य में योगी जी के आदेश को साइड ट्रैक करते हुए UPRNN के अधिकारियों से मिलीभगत करके करोड़ों की बंदरबांट करने वाला अधिकारी आखिरकार मुख्यमंत्री के आदेश को कूड़े में कैसे डाल रहा है?
नया सूचना भवन बनाने और जहॉं वर्तमान में सूचना भवल स्थित है, उसे जमींदोज करने के लिए शासन द्वारा दिये गये 5 करोड़ की राशि को आख्रिरकार कौन खा गया, वो भी मुख्यमंत्री, योगी जी के रहते?
लखनऊ के पार्क रोड़ पर सूचना भवन का निर्माण वर्ष 1960 में हुआ था। भवन काफी पुराना एवं जर्जर हो जाने के कारण वर्ष 2013 में उसके सौंदर्यीकरण एवं रिनोवेशन का प्रस्ताव तत्कालीन सूचना निदेशक द्वारा उ0प्र0शासन को भेजा गया। वर्ष 2014 में सूचना निदेशक द्वारा यह प्रस्ताव किया गया कि सूचना भवन के वर्तमान भवन को तोड़कर नया भवन बनाये जाने के प्रारम्भिक आगणन 54 करोड़ 76 लाख 11 हजार रूपये का अनुमानित व्यय बताया गया और इसके लिए 5 करोड़ रूपये का प्राविधान करने का अनुरोध, शासन से किया गया।
चूँकि उत्तर प्रदेश निर्माण निगम (UPRNN)) का आकलन वर्ष 2012 की दरों पर प्रस्तावित किया गया था, इसलिए उनसे अद्यतन आकलन वर्ष 2014 की दरों पर मांगा गया। निर्माण निगम ने संशोधित प्रस्ताव 57 करोड़ 72 लाख 88 हजार का उपलब्ध कराया। व्यय वित्त समिति की बैठक दिनांक 02.03.2015 में प्रोजेक्ट के लिए 46 करोड़ 49 लाख 45 हतार रूपये अनुमोदित किया गये।
प्रकरण में वित्त विभाग की सहमति से सूचना निदेशक को 5 करोड़ रूपये की स्वीकृति दिनांक 24.3.2015 को जारी की गई,जिसे सूचना निदेशक ने उत्तर प्रदेश निर्माण निगम (UPRNN) को उक्त धनराशि उपलब्ध करा दी।
सूचना निदेशक के पत्र दिनांक 29.02.2016 द्वारा शासन को यह अवगत कराया गया कि चूँकि सूचना भवन का निर्माण माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की रिक्त भूमि पर किए जाने का प्रकरण शासन में विचाराधीन है। इस कारण वर्तमान भवन का डिस्मेंटल कार्य प्रारम्भ नहीं हुआ था और 5 करोड़ की धनराशि निर्माण निगम के पास रही।
दिनांक 23.06.2016 को कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया कि डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल के विस्तार के लिए वर्तमान सूचना भवन चिकित्सालय को दिया जायेगा और माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की रिक्त भूमि पर नवीन सूचना भवन का निर्माण किया जायेगा।
व्यय वित्त समिति की बैठक दिनांक 23.12.2016 को रुपये 64 करोड़ 14 लाख 71 हजार पर कतिपय शर्तो के आधीन अनुमोदन प्रदान करने के लिए दिनांक 27.03.2017 को मा0 मुख्य मंत्री को प्रेषित की गई किन्तु उक्त पत्रावली बिना अनुमोदन के वापस आ गई। सरकार बदल गई थी और वर्तमान सरकार के मा0 मुख्य मंत्री योगी जी ने उक्त पत्रावली पर दिनांक 30.03.2017 को आदेशित किया कि सूचना भवन के निर्माण का जो आगणन है वह हायर साइड प्रतीत हो रहा है। आगणन का परीक्षण किसी विशिष्ट एजेंसी से करा कर औचित्य सहित सुसंगत प्रस्ताव तत्काल प्रस्तुत किया जाए।
निर्माण निगम के आगणन का परीक्षण किसी अन्य विशिष्ट एजेंसी से करा लिया जाए लेकिन कराया नहीं गया, बल्कि 18.04.2017 को विशेष सचिव,वित्त तथा निर्माण निगम के प्रोजेक्ट प्रबंधक को सम्मिलित कर समीक्षा कर ली गई।
मुख्यमंत्री के आदेशानुसार विशिष्ट एजेंसी से परीक्षण नहीं कराया गया, निर्माण निगम के आगणन/परीक्षण में निर्माण निगम के ही प्रोजेक्ट प्रबंधक को रखा गया जो नहीं रखा जाना चाहिए था।
मा0 मुख्य मंत्री के आदेशों का अनुपालन में औचित्य पूर्ण प्रस्ताव क्यों नहीं उनके समक्ष प्रस्तुत किया गया? इन सभी अनियमितताओं के बाद भी दिनांक 02.09 2017 को शासन ने कतिपय शर्तो पर नवीन सूचना भवन के निर्माण हेतु 50 करोड़ 47 लाख 01 हजार रुपये (पचास करोड़ सैतालिस लाख एक हजार मात्र) स्वीकृति प्रदान कर लागत के सापेक्ष में शासनादेश दिनांक 29.12.2017 द्वारा 15
करोड़ 18 लाख 80 हजार रुपये प्रथम किस्त के रूप में सूचना निदेशक ने उत्तर प्रदेश निर्माण निगम को निर्गत कर दिये।
निर्माण निगम की यूनिट संख्या 10 के प्रोजेक्ट प्रबंधक सी0एस0 ओझा द्वारा बिना किसी टेंडर के वर्क आर्डर पर कार्य शुरू कर दिया गया जो शासन के आदेशों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन था। चूँकि सूचना भवन के निर्माण कार्य को हथियाने में उनकी अहम भूमिका थी इसलिए टेंडर के नियमों का उल्लंघन कर और प्रथम किस्त के प्राप्तधन का अभी 10 प्रतिशत कार्य भी पुरा नहीं हुआ था, एक झूठी कार्य प्रगति की रिपोर्ट लगा कर दिनांक 29.03.2018 दूसरी किस्त के रूप में 8 करोड़ 81 लाख 30 हजार रुपये पुनः आहरित कर लिए गये। निर्माण निगम द्बारा प्राप्त धन का बंदर-बांट किया गया है।
उक्त भ्रष्टाचार का प्रकरण जब मीडिया में उछला तो दिनांक 24 मई 2018 को निमार्ण निगम के एम0 डी0 ने उत्तर प्रदेश सरकार की ई-टेंडर वेबसाईट पर टेंडर अपलोड करा दिया तथा 26 मई 2018 को इंडियन एक्सप्रेस, नवभारत टाइम्स में एक छोटे से कालम में टेंडर को प्रकाशित करा दिया गया जिसे अधिकांश बिल्डरों ने पढ़ा तक नहीं। मेसर्स ईस्टर्न कांसट्रक्शन कंपनी 559ख/317 श्री नगर, आलमबाग लखनऊ का टेंडर न्यूनतम पाए जाने पर उसे कार्य आवंटित कर दिया गया।
साथ ही निर्माण निगम की यूनिट संख्या 10 को कार्य से हटा कर यूनिट संख्या 16 के प्रोजेक्ट प्रबंधक पी0के0 जैन को निमार्ण कार्य सौंप दिया गया, लेकिन कार्य में प्रगति और गुणवत्ता निम्न स्तर की बनी रही। यूनिट संख्या 10 को हटा कर जब कार्य यूनिट संख्या 16 को सौंपा गया, तब तक यूनिट संख्या 10 के प्रबंधक ओझा ने 4 करोड़ 23 लाख 31 हजार रुपये का कार्य बिना किसी टेंडर के वर्क आर्डर पर करा दिया दिखा।
चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के अनुदान संख्या 86 के अन्तर्गत सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के मुख्यालय निर्माण मद में रूपये 21 करोड़ 47 लाख 01 लाख में से मात्र 5 प्रतिशत धनराशि 2 करोड़ 52 लाख 35 हजार रोकते हुए अवशेष धनराशि 18 करोड़ 94 लाख 66 हजार रुपये निर्माण निगम को रिलीज कर दी गई।
निर्माण निगम को योजना लागत की पूर्ण धनराशि 50 करोड़ 47 लाख 01 हजार रुपये 29 मार्च 2019 तक प्राप्त हो गई थी, लेकिन निर्माण कार्य अब भी अधूरा है।
सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि वर्ष 2014-15 में शासनादेश संख्या-80/उन्नीस-2-2015-81/2013 दिनांक 24 मार्च 2015 को अनुदान संख्या 86 के अन्तर्गत 5 करोड़ रूपये पुराने सूचना भवन को डिस्मेंटल कर बनाया जाना था, लेकिन जब पुराने भवन को गिरा कर बनाने की योजना बदल गई तो 5 करोड़ रूपया वर्ष 2014-15 से यू0पी0 निर्माण निगम के पास क्यों पड़ा रहा? इसे राजकीय कोष में जमा क्यों नहीं कराया गया इसकी जवाबदेही आखिरकार किसकी फिक्स की गई?
सूचना विभाग एवं उत्तर प्रदेश निर्माण निगम की दुरभि संधि के कारण इस प्रोजेक्ट में बहुत बड़ा घोटाला हुआ है, जिसमें वित्त विभाग और लखनऊ कोषागार की भी संदिग्ध भूमिका है। मा0 मुख्य मंत्री जोकि प्रदेश में सुशासन एवं भ्रष्टाचार मुक्त शासन की नांव रखने को लालायित हैं, उसको उनके के ही अधीन नियुक्त प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी कैसे पलीता लगा रहे हैं। क्या नवीन सूचना भवन के निर्माण कार्य में विलम्ब और इसमें व्यापक पैमाने पर हुए भ्रष्टाचारों की जांच उच्य स्तरीय एस0आई0टी0 से कराये जाने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती?