वन्दे मातरम
Shrimanta Shankardev-पूर्वोत्तर राज्य की महान विभूति
यहां तक की देवी मंदिरों में नर बलि भी दी जाती थी। असम की राजनीतिक स्थिति निराशाजनक थी। पूर्वी असम के अहोम शासकों के राजपरिवार में गृह कलह तथा अनाचारपूर्ण शासन था।
राजनीतिक उथल-पुथल के मध्य असम में भक्ति आंदोलन का सूत्रपात हुआ। कुमारी पूजा, रात्रि जागरण तथा वामाचार से समाज में घोर भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता का वातावरण था। कुमारी के साथ एकांत रात्रि सह-जागरण, भ्रष्ट आचारण के आधार बन चुके थे।
वामाचार अपनी पराकाष्ठा पर था। धर्म के नाम पर व्यभिचार का बोलबाला था। तांत्रिकों के लिए, मांस, मदिरा एवं नारी का सेवन अनिवार्य हो गया था। संपूर्ण असम में नैतिकता का पतन हो चुका था।
धर्म के नाम पर वामाचार फल-फूल रहा था। ऐसे युग में जब अधर्म का अंधकार छाया हुआ था। महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव का प्रादुर्भाव हुआ था। नवगांव जिले के बरदोवा गांव में श्री शंकरदेव (Shrimanta Shankardev) का जन्म अक्टूबर १४४९ ई० के विजया दशमी के पवित्र दिन कायस्थ कुल में हुआ था। ………..Contd.
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