विविध
राम मंदिर हेतु सरकार को 6 दिसंबर तक का अल्टीमेटम
2019 लोकसभा चुनाव में अब आधे साल से भी कम का समय बच गया है तो ऐसे में प्रभु श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर हिन्दू धर्म के संत समाज में सक्रियता तीव्र हो चली है| दिल्ली में विश्व हिन्दू परिषद् ने मंदिर निर्माण आंदोलन के 26 साल बाद अपने संतो की उच्चाधिकार समिति की बैठक बुलाई| इस बैठक में देश भर से 48 संतो ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई|
इस बैठक में संत-गण ने एक स्वर में मंदिर निर्माण की मांग उठाई और इसके लिए सरकार से संसद में एसटी/एसटी एक्ट की तर्ज़ पर कानून लाने की बात कही| इतना ही नहीं समिति ने मोदी सरकार को 6 दिसंबर तक का अल्टीमेटम भी दे डाला है और कहा कि यदि इस तारीख तक सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो वह मंदिर निर्माण हेतु कार्य सेवा शुरू करने को बाध्य हो जायेंगे|
यह है बैठक से निकली बड़ी बातें
- सरकार कानून लेकर मंदिर निर्माण का रास्ता प्रशस्त करे
- श्रीराम जन्मभूमि का स्थान नहीं बदला जा सकता : संत समाज
- राम मंदिर बनाने के कार्य में तेज़ी हो , बर्दाश्त करने की सीमा समाप्ति पर : संत समाज
- केंद्र और 22 राज्यों में सरकार होने के बावजूद याचना करना कष्टदायक : विहिप
- संत समिति का प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति कोविंद को ज्ञापन देने पहुँचा
- 6 दिसंबर तक कानून न बनने पर कारसेवा शुरू कर दी जाएगी
यह होगी आगे की रणनीति
- 3 और 4 नवंबर को दिल्ली में पुनः 3000 -4000 संतो की बैठक होगी|
- अक्टूबर में राज्यों के राजयपालों को ज्ञापन दिया जायेगा
- पारित प्रस्ताव के तहत नवंबर में सांसदों का घेराव किया जायेगा
- दिसंबर में मंदिर -मठो में बैठकें होंगी जहाँ आगे की रणनीति बनाई जाएगी
- कुल मिलकर सरकार पर चौतरफा दबाव बनाने की कवायद रहेगी
विहिप संत और पूर्व भाजपा सांसद रामविलास वेदांती ने अपने स्वाधिर अंदाज़ में संसद के शीतकालीन सत्र में कानून लाये और पारित किये जाने की मांग रखी और ऐसा न होने पर कहा कि यदि संसद से रास्ता नहीं निकलता है तो फिर अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दू-मुस्लिम समुदाय तय करेंगे कि राम मंदिर अयोध्या में और मस्जिद वहाँ से बाहर किस स्थान पर बने| कारसेवा पर पूछे जाने पर उन्होंने किसी तिथि के तय न होने की बात कही लेकिन साथ में अनुमान भी लगा दिया कि 2018 में 6 दिसंबर से मंदिर निर्माण का कार्य आरम्भ हो जायेगा|
“सॉफ्ट हिंदुत्व ” के प्रयोगशाला में लीन विपक्ष की ओर से केवल कांग्रेस ने यह कह कर तंज़ कैसा कि चुनावी के मौसम के साथ भारतीय जनता पार्टी को भगवान रामचंद्र जी याद आते और चुनाव के साथ ही वह चले भी जाते है| संतो का जमावड़ा भी उसी की निशानी|
आपको अवगत करा दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर से मामले की रोज़ाना सुनवाई करने की बात कही है जिसमे आस्था नहीं जमीन की मालिकाना हक़ पर फैसला सुनाया जायेगा| नए प्रधान न्यायधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की न्युक्ति होने के बाद अब मामले पर इसी साल तक फैसला आने की उम्मीद है|
ऐसे में चुनाव से ठीक पहले संतो का राम मंदिर को लेकर यह राजनैतिक मंत्रणा भाजपा के लिए अप्रत्यक्ष तौर पर किया जाने वाला ध्रुवीकरण कृत नहीं तो और क्या है ? क्या उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर यकीन नहीं ? या सच में वह मंदिर निर्माण को लेकर अंतिम कारसेवा का मन बना चुका है ? सरकार अपने कार्यकाल में मंदिर निर्माण कर चुनावी मास्टरस्ट्रोक खेलेगी या फिर 1992 की तरह मंदिर मुद्दे पर घिर जाएगी|
गेंद अभी सुप्रीम कोर्ट के पाले में है लेकिन सरकार उसे छीनती है या नहीं यह केवल प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ही तय करेंगे क्यूंकि इतने सालो में वह रंजनभूमि गए भी नहीं और न ही इस पर कुछ बोले हैं जिससे संत उससे खफा से है| हे राम ! तो देखते है क्या होता है सरकार-सुप्रीम कोर्ट-संत समाज के बीच इस रण में|
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