फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद
पढ़ेंगे ना पढ़ायेंगे प्रोफेसर कहलायेंगे
लेकिन वे यह सब न करके सत्ता से जुड़ने, सत्ता पाने, सत्ता के हरबार नए कनेक्शन खोजने में शक्ति खर्च करते हैं, इससे वे शिक्षा में सत्ताधारी तो हो जाते हैं लेकिन अच्छे प्रोफेसर नहीं बन पाते।
हमारे अधिकांश प्रोफेसरों का यही हाल है, न तो नया पढ़ते हैं और न नया पढ़ाते हैं। जबकि उनको पगार सिर्फ पढ़ने-पढ़ाने के लिए ही मिलती है, उनको पगार सत्तातंत्र से जुड़ने के लिए नहीं मिलती है? यह सामान्य सी और जरूरी बात वे समझने को आज भी तैयार नहीं हैं।
जगदीश्वर चतुर्वेदी,
प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष
हिन्दी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय
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