फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद

पढ़ेंगे ना पढ़ायेंगे प्रोफेसर कहलायेंगे

किसी किस्म के नामांकन की जरूरत नहीं होती थी, शर्त एक होती थी जो विषय चुना है उस पर हर साल नया शोध करके लेक्चर दो। इस क्रम में मिशेल फूको के क्लास नोट्स सामने आए।
अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखें हिंदी में जो आए दिन फूको-फूको करते रहते हैं या फिर पश्चिम के विद्वानों को उद्धृत करके किताबें लिखते रहते हैं, व्याख्यान देते रहते हैं उनमें से अधिकांश तो ठीक से कक्षा में पूरे समय पढ़ाने तक नहीं जाते, उनके क्लास नोट्स मिल जाएं तो आपको शर्मिंदा होना पड़ेगा।

मसलन्, नामवर सिंह के क्लास नोटस प्रकाशित हो चुके हैं, वे किसी भी तरह एक प्रोफेसर के नोट्स नहीं लगते। खासकर एक ऐसे प्रोफेसर के नोट्स तो एकदम नहीं लगते जो दुनियाभर के साहित्य का गंभीर अध्येता रहा हो। हिंदी में रामचन्द्र शुक्ल के साहित्य इतिहास को देखें या फिर हजारी प्रसाद द्विवेदी के दिए गए व्याख्यानों को देखें तो एकदम नए किस्म का अध्यापकीय विवेक और शोधदृष्टि सामने आएगी।

रामचन्द्र शुक्ल ने एमए हिंदी के विद्यार्थियों को इतिहास पढ़ाते समय जो नोट्स बनाए उनके आधार पर बाद में हिंदी साहित्य का इतिहास नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा। द्विवेदी ने आदिकाल नामक किताब में अपने व्याख्यान शामिल किए हैं, इनमें एकदम नई सामग्री है। यही स्थिति उनकी व्याख्यानों की किताब मध्यकालीन बोध का स्वरूप की है। वहां पर मध्यकाल पर एकदम नए नजरिए से विचार किया गया है।

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