धोखा-धड़ी
PNB का महाघोटाला:सरकारें बनीं भक्षक की रक्षक
ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि जिन-जिन बैंकों में हजारों करोड़ के एनपीए हैं। ये NPA बड़े-बड़े कारोबारियों को दिये गये क्रेडिट के कारण ही हैं। मुश्किल से 5 प्रतिशत NPA ऐसे होंगे, जो छोटे लोगों द्वारा लिये गये होंगे और वो भी बैंक स्टाफ की संलिप्तता के कारण फर्जी कागजात लगाकर लिए गये होंगे। जिन्हेें शुरू से ही पता होता है कि इसे चुकाना नहीं है।
बैंकों के ज्यादातर फ्राड, बैंकों के कर्मचारियों की मिलीभगत के कारण ही होते हैं। जनता के धन का कस्टोडियन कहलाने वाले बैंक ही अब खातेदारों के जमाधन को लूटने में लग गये हैं। बैंकों पर अब विश्वास कम होता जा रहा है। जो खतरे का संकेत है।
यदि सरकारों ने बैंकों की इक्विटी में धन देना बन्द कर दिया तो इन बैंकों का हाल वैसा ही होना निश्चित है, जैसा NBFC कम्पनियों का हुआ था। वैसे ही यदि एक ही दिन में PNB के सारे खातेदार अपना सारा धन निकालने पहुंंच जायें तो पता लगे एमडी/चेयरमैन और रिजर्व बैंक को।
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