पंचतंत्र
PanchTantra की कहानी-बेकार का पचड़ा-भाग-2
पंचतंत्र के बेकार का पचड़ा भाग-1 में आपने पढ़ा कि .………
फिर उस क्रोध आया, और यह याद आया कि इसके बाप ने इसके भविष्य के बारे में ज्योतिषियों से सलाह करके ही इसका नाम करटक रखा होगा। ………
अब इससे आगे पढ़िए, भाग-2
इसमें कौए की चालाकी है पर उतनी ही कायरता भी। फिर उसे हंसी आई, यदि बाप ने इसका नाम करकट कर दिया होता तो इसने अपने नाम को सार्थक कर दिया होता।
पर तभी उसे एक दुख ने घेर लिया। वह सोचने लगा, मुझे यदि राजा (King) ने मंत्री के पद से अलग कर दिया तो अनुचित भी नहीं किया। वह मैं सोच क्या रहा हूं। मंत्री-पुत्र होकर क्या मेरी समझ यही है कि किसी की एक ही करनी या कथनी को ले कर उसके बारे में राय बना लूं।
क्या कोई बुरे से बुरा व्यक्ति इतना बुरा होता है कि उसे रास्ते पर लाया ही न जा सके। क्या कोई अच्छे से अच्छा आदमी इतना अच्छा होता है कि उस पर आंख मूंद कर भरोसा कर लें और जब आंख खुले तो पाएं कि उसने इस बीच पूरा कबाड़ा कर डाला है।
फिर राजनीति में तो न कोई सदा के लिए दोस्त होता है न सदा के लिए दुश्मन। फिर सदा के लिए अच्छा या बुरा कैसे हो सकता है! उसने सोचा सबसे पहले तो उसे करटक को ही समझाना चाहिए।
उसने कहा यार सियार हो कर आदमियों की तरह टुच्चापन दिखाते हो! क्या जीवन केवल पेट भरने के लिए है? सच तो यह है कि समझदार लोग तो राजा (King) की सेवा में इसलिए जाते हैं कि अपने साथ सगे-संबंधियों का भी कुछ भला हो और दुश्मनों से बदला लिया जा सके।
पेट तो वे सभी भर लेते हैं, जो आज किसी न किसी तरह जीवित हैं। वह यह बात कह तो गया पर उसे तुरंत लगा कि उसने कूटनीतिक समझदारी का परिचय नहीं दिया। करटक आज मित्र है, कल भी मित्र रहे यह तो जरुरी नहीं।
उसके सामने यह प्रकट करने की क्या पड़ी थी कि वह राजसेवा इसलिए करना चाहता है कि उसमें पहुंच कर भाई-भतीजावाद फैलाए और राजशक्ति का प्रयोग राजा (King) और प्रजा के हित में करने के स्थान पर अपना वैर साधने के लिए करे।
कल को यही मौका पडऩे पर इस भेद को खोल कर उसका अहित कर सकता है। अब उसने अपनी बात पर पर्दा डालने के लिए कहा, यार-जीना उसी का जीना है जिसके जीने से बहुतों को जिंदगी मिले। अपना पेट तो पक्षी भी अपनी चोंच से भर लेते हैं?…….इसके आगे भाग-3 में पढ़ियेगा…..
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