पंचतंत्र

PanchTantra की कहानी-King & Damanak भाग-20

अब पिंगलक ने सोचा, “लगता तो यही है। क्यों ना इसे अपनी समस्या सुना ही दूं। कहते हैं यदि मनुष्य अपने पक्के मित्र से, गुणी सेवक से अपना दुख प्रगट कर दे तो मन कुछ हल्का हो जाता है। फिर उसने दमनक को संबोधित करके कहा,”दमनक, तुम्हें दूर से आती हुई यह डरावनी आवाज सुनाई दे रही है ना?……गतांक-19 से आगे भाग-20:—

दमनक बोला, “सुन तो रहा हूं स्वामी। पर इससे क्या?”

पिंगलक बोला,“मित्र,अब मैं इस वन को छोड़कर कहीं और चला जाना चाहता हूं।” 

“पर कारण क्या है?” दमनक ने पूछा।

“जान पड़ता है इस वन में कोई ऐसा जानवर आ गया है जैसा इससे पहले न तो देखा था और न सुना था। यह गंभीर नाद उसी का है। जैसी भयावनी उसकी दहाड़ है वैसा ही विकराल उसका आकार होगा और उतना ही पराक्रम होगा उसमें। अब उसके आगे मेरी क्या चलेगी! पिंगलक ने अपने मन को दमनक के सामने खोल दिया।

दमनक ने कहा, “महाराज यदि शब्द सुनकर ही डर गए हैं तो यह उचित नहीं है। कहते हैं पानी से बांध टूट जाता है। छिपा कर न रखा गया तो मंत्र का प्रभाव खत्म हो जाता है। चुगलखोरों की बात पर कान देने से प्रेम नष्ट हो जाता है, और घबराया हुआ आदमी घुड़की सुनकर ही हार मान लेता है।” 

महाराज, आपके बाप-दादा ने इस वन का राज्य पाया था और यह आपको उनसे दाय के रूप में मिला है। क्या यह उचित होगा कि आप इसे किसी की दहाड़ सुनकर ही छोड़कर चल दें? ऊंची आवाज तो दुन्दुभी, बांसुरी, वीणा,मृदंग,झाल, तासे और दमागे आदि में भी होती है।इसलिए केवल शब्द सुनकर डर जाना कहां की बुद्धिमानी है?” 

कहते हैं यदि किसी बहुत बलवान और भयावने वैरी से सामना हो जाए तो भी हार नहीं माननी चाहिए। जिसका धीरज बना रहता है उसे कभी मुंह की नहीं खानी पड़ती। आदमी की तो बात ही अलग है, धीरज रखने वाले के सामने तो एक बार को ब्रह्मा जाएं तो उनको देखकर भी वे डांवाडोल नहीं होते। उल्टे वे उमंग से भर उठते हैं। गर्मी के दिनों में जब नदी- तालाब सूख जाते हैं उस समय भी समुद्र उछलता और लहराता रहता है।

कहते हैं जिसे विपत्ति में विश्वास नहीं होता, संपत्ति मिलने पर हर्ष नहीं होता, युद्ध में कायरता नहीं व्यापती, अपनी मां का ऐसा लाल कोई- कोई ही होता है। 

ऐसे लोग जो कमजोर होने के कारण बात-बात में झुक जाते हैं, जो बेचारगी में सदा दीन-हीन ही बने रहते हैं, जो आदर- मान गंवा कर भी जीते रहते हैं, उनकी जिंदगी तिनकों के समान तुच्छ है। 

जो शत्रु को आग बबूला होते देखकर नाम पड़ जाता है, वह तो लाख के बने आभूषण जैसा है जो देखने में तो बहुत सुंदर लगता है पर जरा सी आंच से पिघल कर गिर जाता है। ऐसे आदमी में ऊपरी चमक-दमक जितनी भी क्यों न हो, वह दो कौड़ी कि ही है। 

मैं तो यही कहूंगा कि इन बातों को ध्यान में रखकर आपको धैर्य से काम लेना चाहिए। केवल हुंकार सुनकर डर कर भाग नहीं चलना चाहिए। आपने तो सुना ही होगा, “पहले तो मैंने सोचा था कि यह मांस और चर्बी से भरा होगा। भीतर जाकर देखा तो पता चला चमड़ा और लकड़ी छोड़कर इसमें कुछ है ही नहीं।” 

इसका सिर-पांव पिंगलक की समझ में आया ही नहीं। उसने पूरी बात खोल कर करने को कहा।

दमनक ने कहा, “मैं आपको पूरी कहानी सुनाता हूं।” शीर्षक है ढोल की पोल।

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