PanchTantra की कहानी-King & Damanak भाग-19
पिंगलक ने उसे उकसाया, तो फिर वही कहो ना। इतना घुमा-फिरा कर कहने का क्या मतलब है। गतांक-18 से आगे भाग-19:—
पर दमनक तो दमनक। वह शुक्र और बृहस्पति के हवाला दिए बिना नीति की बात भला कैसे कर सकता था। बोला, महाराज, बृहस्पति का कहना है कि यदि कोई बात छह कानों में पड़ जाए तो वह छिपी नहीं रह जाती। उसे फूटने से बचाने के लिए जरूरी है कि वह दो के बीच ही बनी रहे, किसी तीसरे के कान में न पड़ने पाए- इसलिए समझदार आदमी को भरसक कोशिश इसी बात की करनी चाहिए कि मंत्रणा के समय कोई तीसरा वहां ना हो।
दमनक की बात सुनते ही बाघ, लकड़बग्घे, भेड़िया आदि नीति जानने वाले सामंत तो इशारा समझ कर चुपचाप वहां से अलग चले गए, बाकी को द्वारपालों ने हटा दिया। फिर दमनक धीरे से बोला, “महाराज आए तो पानी पीने के लिए थे। फिर पानी पीने पिए बिना ही यहां आकर क्यों बैठे हैं?”
पिंगलक भी कम उस्ताद नहीं था। अपना भेद वह इतनी आसानी से खोलने वाला नहीं था। बोला, “इसमें ऐसी क्या बात हो गई। जी मैं आया बैठ जाऊं सो बैठ गया।”
दमनक ने पैंतरा बदला, “ठीक है यदि बात बताने लायक नहीं है तो मत बताइए। क्योंकि नीति भी यही कहती है कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें अपनी पत्नी से भी छुपा कर रखना चाहिए। कुछ ऐसी बातें हैं जिनका पता अपने प्रियजनों को भी न लगने देना चाहिए। कुछ बातें समवयस्क मित्रों और पुत्रों से भी छिपा कर रखी जानी चाहिए। अत: विद्वान व्यक्ति को उचित-अनुचित का ध्यान रखकर ही कोई बात किसी को बताना चाहिए।”
अब पिंगलक ने सोचा, “लगता तो यही है। क्यों ना इसे अपनी समस्या सुना ही दूं। कहते हैं यदि मनुष्य अपने पक्के मित्र से, गुणी सेवक से अपना दुख प्रगट कर दे तो मन कुछ हल्का हो जाता है। फिर उसने दमनक को संबोधित करके कहा,”दमनक, तुम्हें दूर से आती हुई यह डरावनी आवाज सुनाई दे रही है ना?…….आगे का पढ़िए भाग-20 में।