पंचतंत्र

PanchTantra की कहानी-बेकार का पचड़ा-भाग-5

विद्वानों, बड़प्पन चाहने वालों, गृणियों, वीरों और सेवकों की मुश्किल तो यह है कि राजा (King) को छोड़ कर उनका दूसरा ठिकाना ही नहीं है। वे जाएं भी तो कहां? पूछेगा कौन?

जो लोग जाति या कुल आदि के अभिमान के कारण राजा (King) की सेवा करने से कतराते हैं, उनको इसका एक ही रुप में प्रायश्चित करना पडता है। और वह है आजीवन भीख मांगते रहना।

दमनक तरह-तहर से समझाता रहा, पर करटक के चेहरे पर जूं तक नहीं रेंगी। दमनक ने हिम्मत न हारी, वह उसे फिर भी मनाता रहा। देखो, दुनिया में ऐसे लोग भी हैं।

जो मानते हैं कि लाख जतन करो? राजा (King) का मुंह कभी सीधा हो ही नहीं सकता। ऐसा कहने वाले या तो झूंठी तड़ी में रहते हैं? या आलसी होते हैं या मूर्ख।

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