पंचतंत्र

PanchTantra की कहानी-बेकार का पचड़ा-भाग-7

पंचतंत्र के बेकार का पचड़ा भाग-6 में आपने पढ़ा कि —……..

करटक एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखने वालों में था। वह किसी काम में जल्दी नहीं करता था और पूरी बात समझे बिना कुछ करने को तैयार ही नहीं होता था। बोला, तुमने यह कैसे जान लिया कि इस समय वह डरा हुआ है?

अब इससे आगे पढ़िए, भाग-7…………

दमनक (Damanak) से बोला, हंसने लगा, इसमें जानने की क्या बात है? सब कुछ बता दो तो जानवर भी किसी बात को समझ लेता है। सियार और आदमी की समझ की कसौटी तो यह है कि वह देख कर ही ताड़ ले कि किसी के मन में क्या है।

बुद्घि का, सच पूछो तो काम ही यह है कि वह बिना कुछ बताए ही मनुष्य के हावभाव को देख कर ही उसके मन की बात जान ले। कहा गया है कि, मनुष्य के आकार, इशारे, चाल, हावभाव, बात, आंख, मुख के विकारों को देख कर ही यह पता लगाया जा सकता है कि उसके मन में क्या है।

दमनक (Damanak) बोला, तुम यह समझ लो कि पहले तो कारण का पता लगाऊंगा। फिर उसका कोई रास्ता निकाल कर राजा के भय को दूर करूंगा। इसके बाद तो वह मेरे चुंगल में आ ही जाएगा। फिर अपना मंत्री पद प्राप्त करूंगा।

करटक कुछ अधिक ही चौकसी बरतता था। दमनक (Damanak) से बोला, तुम्हें यह तो मालूम नहीं कि वह किस बात से खीझता और किस बात पर रीझता है। कभी किसी राजा की सेवा का मौका तो इससे पहले मिला नहीं। इस हालत में उसे अपने वश में कर पाओगे?

बात दमनक (Damanak) को बुरी लगनी चाहिए थी और लगी भी। उसने कहा, मुझे तुमने इतना अनाड़ी समझ रखा है? जब मैं गोद में खेलता था उस समय से ही पिता जी से मिलने-जुलने वालों की बातें सुन कर नीतिशास्त्र की बारीकियां समझने लगा था।

जो कुछ उस समय मैंने सुना और जाना था उसका सारांश मैं तुम्हें बताता हूॅ। कम से कम इसे तो गांठ बांध ही लो। दमनक (Damanak) बोला, यह दुनिया ऐसी है जिसमें जिधर देखो, उधर सोने के फूल खिले हैं। पर तीन ही लोग हैं जो इन फूलों को चुन सकते हैं। ये हैं वीर पुरूष, विद्वान और सेवा-
टहल का मर्म जानने वाले।

इसके आगे भाग—8 में पढ़ियेग़ा……….

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