पंचतंत्र
PanchTantra की कहानी भाग-छह
शील क्षमा शुचिता दया मीठे बैन विचार
कुल कौशल सब दीन को तजैं न लावै बार।।
मान दर्प विज्ञान ज्ञान कल्पना निपुणता।
सभी छोड़ते संग पुरूष की देख दीनता।।
नमक तेल आटा बेसन लकड़ी चावल दाल।
इस चिंता में बीतता विद्वानों का काल।।
बिन तारा सूना गगन, बिन जल सूखा ताल
संपद गए भवन लगे प्राणहीन विकराल।
रोगी कामी मातला, दुखिया चिंता लीन।।
देखे जो भी स्वप्र वी निपट प्रयोजन हीन।
घर छोछ़ा बेघर हुआ, बिना वसन, करथाल।
तृष्णा, पर छूटी नहीं, सन्यासी का हाल।।
केश बुढ़ापे में झरे, दांत झरे, पगुरात।
दीखे कछुक न सुनि पड़ै, तृष्णा बढ़ती जात।।
मुंहफट, मूर्ख, कुरुप हो, हो व्यसनी, बदकार।
देख पूत कपूत भी, उपजत हर्ष अपार।।
शीतल सुरभित सुखद सच, चंदन मानत लोग।
पुत्र परस सब विधि अधिक, मणि कंचन का योग।।
लोभ अधिक मत कीजिए, मत बनिए पामाल।
अधिक लोभ से क्या हुआ, घनचक्कर का हाल।।
दुख सुख व्याधि अकाल में,संकट में हो प्राण।
न्यायालय शमशान में, बंधु सदा दे त्राण।।
मेरा तेरा गैर का, करत रहहिं लघुचेत।
दुनिया घर का आंगना, महापुरुष के हुत।।
पर यह इतना समय साध्य काम था जिसकी अनुमति न तो मेरी भावी योजनाएं देती थीं। न ही प्रकाशन संस्थान दे सकता था। यह पुनर्रचना पाठकों को कितना संतोष दे पाती है यह नहीं जानता पर मेरी अपनी अतृप्ति तो बनी ही रहनी है।-भगवान सिंह। ……………………………आगे भाग–सात
राज्यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्ट हिन्दी खबर से जुड़ी जानकारी के लिये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।