पंचतंत्र

PanchTantra की कहानी भाग-छह

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि……………वह भाग्यवाद को पूरी तरह खारिज तो नहीं करते पर ‘जो बिधना ने लिख दिया छठे मास के अंत, राई घंटे न तिल बढ़ै रहु रे जीव निसंक कह कर भाग्यवाद का प्रचार नहीं करते अपितु इसको मानते हुए भी कर्म और उद्यम पर बल देते हैं। जो भाग्य को भी बदल सकता है या जिसके बिना उसका भी भोग नहीं किया जा सकता जो भाग्य में बदा है।…अब इसके आगे पढ़िए
इन कहानियों का बयान करते समय हमारा ध्यान इस ओर रहा है कि इसकी भाषा को इतना सरल रखा जाए कि, जिसे समाचार-पत्र पढऩे की योग्यता हो उसे या नवसाक्षरों को भी इसे पढऩे और समझने में कम से कम असुविधा हो। विषय की तकनीकी सीमाओं के कारण अनेक स्थलों पर तत्सम तकनीकी शब्दावली का भी व्यवहार करना जरूरी हुआ है।

PanchTantra (पंचतन्त्र) की सुन्दर कहानियॉं

https://northindiastatesman.com/2017/09/panchtantra-o/

पर साथ ही यह प्रयत्न किया गया है कि-उनका भाव नवसाक्षरों की भी समझ में आ जाए। इसके बाद भी हम इस बात के निर्णायक नहीं हो सकते कि हमें इस प्रयत्न में कितनी सफलता मिल पाई है। शैली जितनी सीधी और सरल होनी चाहिए थी,उतनी हम नहीं रख पाए हैं।….………….Contd.

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।
1 2 3Next page

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

sbobet

Power of Ninja

Power of Ninja

Mental Slot

Mental Slot