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‘पद्म श्री’ को शरीफ़ चचा बतौर सम्मान मिल रहे हैं

ये हैं फ़ैज़ाबाद के मोहम्मद शरीफ़, जिन्हें चाचा शरीफ़ के नाम से सभी जानते हैं। ये अब तक 25000 (पच्चीस हजार) से ज़्यादा लावारिस लाशों का ससम्मान अंतिम संस्कार कर चुके हैं। और अब इन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म श्री’ से नवाज़ा जाएगा।

वर्ष 1992 में इनके बड़े बेटे मोहम्मद रईस ख़ान, पास के ज़िले सुल्तानपुर में बतौर केमिस्ट काम करते थे और अचानक लापता हो गए। काफ़ी खोजबिन के बाद भी कोई पता नहीं चल सका और फिर एक माह बाद उनकी बाडी सड़क किनारे बोरे में  लावारिस हालत में मिली, उनकी हत्या कर दी गयी थी और उन्हें सड़क किनारे बोरे में भर के फेंक दिया गया।

ऐसी दुःखद घटना के बाद दुनिया का कोई बाप बुरी तरह से टूट जाएगा और सिर्फ़ बदला ही लेना चाहेगा। इसके अलावा कुछ नहीं, मगर शरीफ़ चाचा ने कुछ अलग सोचा, बिल्कुल अलग, जो किसी भी ‘इंसान’ की दिमाग़ से परे था। सोचना भी और वैसा करना भी। शरीफ़ साहब ने ये ठाना की जिस तरह उनके बेटे की बॉडी लावारिस हालत में पड़ी रही, ख़राब होती रही वैसा वो किसी और मृत शक्श के साथ नहीं होने देंगे।

इतने दर्दनाक और बड़े हादसे के बाद इस तरह की सोच …!!

बतौर चाचा, “दुनिया से इज्जत से रुक्सती सब का हक़ है,जो कि उन्हें मिलना ही चाहिए।”

ऐसे में जब ज़िंदा इंसान की कद्र नहीं किसी को,माँ-बाप,रिश्ते-नातों की इज़्ज़त नहीं। ऐसे दौर में ‘लाशों की इज़्ज़त’ के बारे में सोचने वाले शरीफ़ चाचा को अगर ‘फ़रिश्ता’ ना कहें तो क्या कहें !
शरीफ़ चाचा से हम लोगों को इंसानियत सीखने की ज़रूरत है। वे बिना किसी भेद-भाव के ज्ञात शवों का हिंदू रीति-रिवाज, मुस्लिम तरीक़े तथा अज्ञात शवों का सरकारी प्रोटकॉल के तहत सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करते हैं।

ऐसी लाशों को जिसे देखना तो दूर की बात हम-आप उसके बग़ल से भी नहीं गुज़र सकते ,ऐसी लाशें जिन्हें देख कर उनके अपने भी पीछे हट जाते हैं ,क्षत-विक्षत और जाने किन-किन दशा की लाशों को शरीफ़ चाचा अपने हाथों से आख़िरी सफ़र पूरा कराते हैं, वो भी पूरी इज़्ज़त के साथ। जिन लावारिसों को जीते जी कोई सम्मान नहीं दे पाता है, शरीफ़ चाचा मरने के बाद भी उन्हें सम्मान देते हैं।

धर्म की आड़ में, नफ़रत में एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हिंदू और मुसलमान दोनों को ठंडे दिमाग़ से शरीफ़ चाचा से ‘इंसानियत’ सीखनी चाहिए। ईर्ष्या,नफ़रत,हिंसा के धधकते रेगिस्तान मे शरीफ़ चाचा एक ठण्डे हवा के झोंके की तरह हैं। मेरी नज़र में तो ‘पद्म श्री’ को शरीफ़ चाचा बतौर सम्मान मिल रहे हैं।

एक बात और, शरीफ़ चाचा की फ़ैज़ाबाद में साइकल की मरम्मत की दुकान है, जी हाँ ये ‘पंक्चर’ वाले हैं। जब-जब नफ़रत के सौदागरों को लगता रहेगा की वो जीत रहे हैं तो ऐसे में शरीफ़ चाचा जैसे फ़रिश्ते आकर उन्हें जवाब देते रहेंगे।
मोहम्मद शरीफ़ चाचा आपको दिल से सलाम।

(साहिल सेज़ की फेसबुक वॉल से)

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