वन्दे मातरम

धार्मिक क्रांति के सूत्रधार पामहैबा

मणिपुर के महाराज चराईरौङबा ने सन 1704 ई० में यज्ञोपवीत धारण किया था और 1707 ई० में भगवान विष्णु के मंदिर का निमार्ण करवाया था। उनकी दूसरी रानी निङथीन चाइबी की कोख से भगवान की कृपा से मायम्बा या पामहैबा का जन्म हुआ था।

myanmar-beach
myanmar-beach

ये कालांतर में महाराजा गरीबनवाज के नाम से सन 1709 ई० में मणिपुर के सिंहासन पर बैठे। मणिपुर में श्री राधाकृष्ण-भक्ति का श्रीगणेश इन्हीं के द्वारा हुआ। इनके राजसिंहासन पर आसीन होने के साथ मणिपुर में एक नये युग का पदार्पण हुआ।

महाराजा गरीबनवाज की तुलना मणिपुर के इतिहासकार सम्राट हर्षवर्धन से करते हैं। मणिपुर को अनेक शताब्दियों से एक योग्य शासक और नेता की आवश्यकता थी। महाराज गरीबनवाज द्वारा इस आभव की पूर्ति हुई।

उन्होंने अपने बाहुबल से एक ओर जहां म्यांमार की राजधानी आवा पर विजय प्राप्त की वहीं दूसरी ओर मणिपुर में धार्मिक क्रांति का सूत्रपात किया। मायम्बा उपनाम पामहैबा के जन्म से ईश्वर-कृपा की एक कथा से जुड़ी हुई है।

उन दिनों मणिपुर में पटरानी के अतिरिक्त यदि किसी अन्य रानी की कोख से पुत्र जन्म लेता था तो उसकी हत्या कर दी जाती थी। यह परंपरा इसलिए प्रचलित थी कि राज्य सिंहासन को लेकर भाई-भाई आपस में न झगडें।

पामहैबा का जन्म दूसरी रानी के गर्भ से हुआ था। अत: उनकी हत्या निश्चित थी। उनके नाना ने नवजात बालक को चुपचाप राजधानी से दूर अपने किसी नगा मित्र के यहां पुहंचा दिया तथा रानी ने राजा को यह बता दिया कि उनके गर्भ से एक पत्थर का जन्म हुआ है।

इस प्रकार शिशु पामहैबा के प्राणों की रक्षा हुई। यह ईश्वर-कृपा का चमत्कार ही था। चराईरौङबा की पटरानी के कोई संतान नहीं हुई। कहते हैं कि एक बार जब वे नगा क्षेत्र के दौरे पर गए तो उन्होंनेे पामहैबा को देखा।

बालक के सौंदर्य पर मुग्ध होकर उन्होंने नगा जाति के मुखिया के सम्मुख बालक को गोद लेने का प्रस्ताव किया, जिसे नगा-प्रधान ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस प्रकार पामहैबा पुन: अपने खोए हुए स्थान पर लौट आए।

यह कथा भी प्रचलित है कि पामहैबा के जन्म के चार वर्ष बाद जब पटरानी को उनके जन्म का समाचार और नगा-प्रधान के द्वारा पालन-पोषण की खबर गुप्तचरों से प्राप्त हुई तो उन्होंने गोपनीय रूप से उनकी हत्या का षड्यंत्र किया, किंतु भगवत कृपा से बालक पामहैबा बच गए।

बाद में उनकी माता ने पति को पामहैबा के जन्म व पालन-पोषण संबंधी बात बता दी और महाराज ने उन्हें युवराज के रूप में स्वीकार कर लिया। अत: युवराज पामहैबा पिता की मृत्यु के बाद मणिपुर के सिंहासन पर बैठे।

महाराजा गरीबनवाज पामहैबा का अछूत नगा जाति में पालन-पोषण होने के कारण उन्हें नगावंशी कहकर कुछ लोगों ने विरोध भी किया, किंतु उनकी माता एवं नाना ने उनका राजवंशी होना सिद्घ कर दिया।

कुछ इतिहासकारों का मत है कि शान्तिदास अधिकारी नामक वैष्णव संत, जो वैष्णव धर्म के प्रचार हेतु उस समय मणिपुर आए हुए थे, ने पामहैबा के राजवंशी होने के तथ्य की पुष्टि की थी। इन्होंने अपने शासन-काल में कई बार म्यांमार पर आक्रमण किए और विजय प्राप्त की।……..

आगे पढ़िए भाग—1

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

sbobet

Power of Ninja

Power of Ninja

Mental Slot

Mental Slot