साइबर संवाद

North Korea पर हैरान करने वाली चुप्पी

North Korea की परमाणु प्रसार नीति ने अमेरिका को हिला कर रख दिया है। सनकी तानाशाह किम जोन की हठवादिता से शांतप्रिय देशों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो चली है। किम की यह मुहिम अमेरिका को डराने के लिए है या फिर चैथे विश्वयुद्ध की दस्तक, कहना मुश्किल है। क्योंकि अमेरिका की लाख कोशिश और धमकी के बाद भी उत्तर कोरिया पर कोई असर दिखाई नहीं पड़ता दिख रहा ….

प्रभुनाथ शुक्ल

North Korea की आणविक प्रयोगवाद की जिद उसे कहां ले जाएगी, वह परमाणु सम्पन्नता से क्या हासिल करना चाहता है, वैश्विक युद्ध की स्थिति में क्या वह अपने परमाणु हथियारों को सुरक्षित रखा पाएगा? वह परमाणु अस्त्र का प्रयोग कर क्या अपने को सुरक्षित रख पाएगा? परमाणु अस्त्रों के विस्फोट के बाद उसका विकिरण और इंसानी जीवन पर पड़नेवाला दुष्परिणाम किसे झेलना पड़ेगा? उसकी यह मुहिम सिर्फ एक सनकी शासक की जिद है या फिर मानवीयता को जमींदोज करने एक साजिश? कोरिया पर बढ़ती वैश्विक चिंता के बाद भी दुनिया इस मसले पर गम्भीर नहीं दिखती।

इसकी वजह से अमेरिका की चिंता काफी गहरी होती जा रहीं है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की कड़ी सैन्य चेतावनियों के बाद भी किम की सेहत पर कोई असर फिलहाल नहीं दिख रहा। इस मसले पर चीन और रूस की भूमिका साफ नहीं है। किम की दहाड़ से यह साबित होता है कि रूस और चीन आणविक प्रसार को लेकर संवेदनशील नहीं हैं। North Korea लगातर परमाणु परीक्षण जारी रखे है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की चेतावनी के बाद भी यूएन के सभी स्थाई सदस्य चुप हैं। इसकी वजह से सनकी शासक पर कोई असर नहीं दिखता है और वह मिशन पर लगा है। किम हाइड्रोजन बम का भी परीक्षण कर चुका है। जिसका कबूलनामा और तस्वीरें दुनिया के सामने आ चुकी हैं। यही वजह है कि अमेरिका के साथ जापान को भी पसीने छूट रहें हैं, क्योंकि उत्तर कोरिया बार- बार ट्रम्प कि धमकियों को नजर अंदाज कर मुंहतोड़ जवाब देने की बात कह रहा है।

यह बात साफ होने के बाद कि कोरिया को पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर ने यह तकनीक पाकिस्तानी सरकार के कहने पर उपलब्ध कराई, अमेरिकी सरकार और चिढ़ गई है। यही कारण है कि पाक की नीतियों को संरक्षण देने वाला अमेरिका उसे अब आतंकियों के संरक्षण का सबसे सुरक्षित पनाहगार मानता है। दूसरी अंतर्राष्टीय बात है कि अमेरिका , भारत और जापान की बढ़ती नजदीकियों से चीन और पाकिस्तान जल उठे हैं।

इसकी वजह है कि रूस, चीन और पाकिस्तान की तरफ से North Korea को मौन समर्थन मिल रहा है। हालांकि वैश्विक युद्ध की फिलहाल सम्भावना नहीं दिखती है, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो रूस, चीन और पाकिस्तान उत्तर कोरिया के साथ खड़े दिख सकते हैं। जबकि भारत, जापान और अमेरिका एक साथ आ सकते हैं।

आतंकवाद के खिलाफ ट्रम्प सरकार ने जिस तरह वैश्विक मंच पर भारत का साथ दिया है, उसकी वजह से भारत आतंकवाद को वैश्विक देशों के सामने रखने में कामयाब हुआ है। यूएन ने भी भारत के इस प्रयास की सराहना की है। दक्षिण सागर और डोकलाम पर भारत की अडिगता चीन को खल रहीं है।

रूस ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि उत्तर कोरिया पुनः मिसाइल परीक्षण की तैयारी में जुटा है जिसकी जद में अमेरिका का पश्चिम भाग होगा। वैसे अमेरिका कोरिया पर लगातर दबाव बनाए रखे है। वह आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध भी लगा चुका है। इसके विपरीत रुस और चीन की तरफ से कोई ठोस पहल नहीं की गई।

अमेरिका किसी भी चुनौती के लिए तैयार खड़ा है। अमेरिका, कोरिया पर हमला करता है तो उस स्थिति में रूस और चीन की क्या भूमिका होगी, यह देखना होगा। दोनों तटस्थ नीति अपनाते हैं या फिर कोरिया के साथ यु़द्ध मैदान में उतर चैथे विश्वयुध्द के भगीदार बनते हैं। यह बात करीब साफ हो चली है कि अमेरिका और उत्तर कोरिया में शीतयुद्ध के बाद की स्थिति आणविक जंग की होगी। किम को यह अच्छी तरह मालूम है कि सीधी जंग में वह अमेरिका का मुकाबला कभी नही कर सकता है।

अमेरिकी सैन्य ताकत के सामने किम कि सेना और हथियार कहीं से भी टिकते नहीं दिखते। उस स्थिति में उत्तर कोरिया के सामने अमरीका को बंदरघुड़की देने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता। युद्ध की स्थिति में कोरिया लम्बे वक्त तक नहीं टिक पाएगा।

उस हालात में सब से अधिक बुरा परिणाम सनकी शासक किम को भुगतान पड़ेगा। इसके अलावा सबसे बुरा असर समूची मनवता पर पड़ेगा। परमाणु अस्त्रों के प्रयोग से विकिरण फैलेगा। दुनिया में अजीब किस्म कि बीमारियों का प्रकोप बढ़ेगा। विकिरण कि वजह से लोग विकलांग पैदा होंगे।

धरती पर तापमान बढ़ेगा और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। आणविक युध्द कि पीड़ा कोई जापान से पूछ सकता है। सन 1945 में विश्व युध्द के दौरान उस पर आणविक हमले हुए थे, जिसका नतीजा है कि 70 साल बाद भी लोग विकलांग पैदा होते हैं और उसका डंस पीढियों को भुगतना पड़ रहा है।

North Korea की तानाशाही पर वैश्विक देश एक मंच पर नहीं आते तो स्थिति विकट होगी। फिर दूसरे देशों पर भी लगाम कसनी मुश्किल होगी और दुनिया में आणविक प्रसार की होड़ मच जाएगी। उत्तर कोरिया की बढ़ती तानाशाही की वजह से अमेरिका ने साफ तौर पर कह दिया है कि आणविक प्रसार प्रतिबंध की बातें बेईमानी हो रहीं हैं।

परमाणु अप्रसार संधि का कोई मतलब नहीं रह गया है। अमेरिका की इस बात साफ जाहिर हो गया है कि अब वह इस संधि पर अधिक भरोसा नहीं कर रहा है। दुनिया भर में आंतरिक सुरक्षा को लेकर संकट खड़ा हो गया है। स्थिति यह साफ संकेत दे रही है कि अगला विश्व युध्द परमाणु अस्त्रों का होगा।

इस हालात को देखते हुए दुनिया के देशों में आणविक प्रसार की खुली होड़ शुरू हो जाएगी। इसका सीधा असर शांति व्यवस्था पर पड़ेगा। इसके अलावा जवाबदेह संस्थाएं बेमतलब साबित होंगी। कोरिया के खिलाफ दुनिया को एक मंच पर आना चाहिए और उसकी आणविक दादागिरी पर रोक लगनी चाहिए। वरना मानवीय हित संरक्षक संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी संस्था को कड़े कदम उठाने चाहिए।

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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