National Legal Competition के विजेताओं को वजीफा

देश में न्यायिक व्यवस्था में सुधार को लेकर भले ही देश की सरकार और न्यायिक व्यवस्था परिवर्तन की पहल को लेकर संजीदा ना हों, लेकिन देश-भर में युवा, न्यायिक व्यवस्था में पैठ बना चुकी समस्याओं के खिलाफ बेबाक तौर पर अपनी बात कहने को आतुर हैं। देश भर के विधि छात्रों के बीच इसी विषय पर आयोजित हुई दो National Legal Competition में छात्रों की प्रस्तुतियों में इसकी बानगी देखने को मिली।
महात्मा गांधी औऱ लाल बहादुर शास्त्री की जयंति 02 अक्टूबर के मौके पर National Legal Competition पुरस्कार वितरण कार्यकम, उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिकरण में आयोजित किया गया। जिसमें देश-भर के विधि छात्रों के साथ विधि विशेषज्ञों ने भागीदारी की और न्यायिक सुधार पर अपने अनुभव साझा किए। यह आयोजन विधि के दो छात्रों अमरेश पटेल और शिवम कुमार गुप्ता द्वारा स्थापित इन टू लीगल वर्ल्ड द्वारा आयोजित किया गया।
National Legal Competition पुरस्कार वितरण समारोह में विधि छात्रों को संबोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस सुधीर कुमार सक्सेना ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए एक हॉलिस्टिक एप्रोच अपनानी पड़ेगी। व्यवस्था की खामी किसी एक स्तर पर ना होकर व्यापक तौर पर है।
न्यायिक व्यवस्था में समस्याओं को एक अल्ट्रा वायरस के तौर पर देखते हुए कार्रवाई करने की दरकार है। जो फौरी तौर पर संभव नजर नहीं आता। इसलिए छात्रों को व्यावहारिक पक्षों को जानने-समझने पर ज्यादा जोर देना चाहिए। जिससे वो न्यायिक व्यवस्था में सुधार की दिशा में अपना योगदान सुनिश्चित कर सकें।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय लोक सेवा अधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष जस्टिस खेमकरन ने अपने अनुभव साझा करते हुए साफगोई से बताया कि सिस्टम में व्यापक बदलाव की जरूरत है। आज 58 से 60 फीसदी अदालतों का समय तो केवल वकीलों की हड़ताल की भेंट चढ़ जाता है। जो मुकदमे दाखिल होते हैंl
उनमें कानूनी पेचदगियों को ठीक से प्रस्तुत नहीं किया जाता। जिससे मुकदमों के निस्तारण की गति धीमी है। जस्टिस खेमकरन ने व्यापाक भ्रष्टाचार को भी स्वीकार किया। और कहा कि जिला अदालतें न्याय व्यवस्था की रीढ़ की तरह हैं। जिनमें सबसे ज्यादा समस्याएं हैं। लाखों लोग अदालतों की दहलीज पर चक्कर लगाते—लगाते पूरी जिंदगी गंवा देते हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ राममनोहर लोहिया विधि विश्विद्यालय के पूर्व कुलपति और एमिटी लॉ स्कूल के निदेशक प्रोफेसर बलराज चौहान ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में सुधार की दिशा में विधि विश्वविद्यालयों की बड़ी भूमिका है। जिसे गंभीरता से समझने की आवश्यकता है। कानून की रौशनी में न्याय हासिल करने के लिए करोड़ों लोग अदालतों की दहलीज पर पहुंचते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को समय रहते न्याय हासिल होता है। जेलों की हालत इसीलिए बदतर होती जा रही है।
न्यूजटाइम्स नेटवर्क के संपादक सौरभ मिश्रा ने भारतीय न्याय दर्शन का हवाला देते हुए आधुनिक न्याय प्रणाली में सुधार को लेकर सभी पक्षों से पहल की अपील की। और विधि के छात्रों को स्वयं पहल करने के साथ समस्याओं के समाधान में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि देश-भर के किसी भी विश्वविद्यालय का कोई भी छात्र अगर सार्थक पहल करता है तो न्यूजटाइम्स नेटवर्क उसमें हर संभव सहोयग करेगा। औऱ सहयोगी संस्था यूनाइट फाउण्डेशन की ईकाई यूनाइट लीगल, इस दिशा में निरन्तर कार्य कर रही है।
इन टू लीगल वर्ल्ड, यूनाइट लीगल और न्यूजटाइम्स के सौजन्य से आयोजित दोनो प्रतियोगताओं में देश भर के 78 राष्ट्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों, प्राइवेट विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों के करीब 500 विधि छात्रों ने हिस्सा लिया।
दोनो ही प्रतियोगिताओं का समापन सोमवार को राजधानी लखनऊ के इंदिराभवन स्थित उत्तर प्रदेश लोकसेवा अधिकरण के प्रेक्षागृह में हुआ। नेशनल लीगल कॉम्पटीशन के तहत ‘Reform in Judicial Sytem’ विषय पर आयोजित ऑनलाइन प्रतियोगिता में देश भर के करीब 500 विधि छात्रों ने हिस्सा लिया।

जिसका प्रथम पुरस्कार एमिटी विश्वविद्यालय की विधि छात्रा अदीबा शेख ने जीता, तो वहीं द्वितीय पुरस्कार कंचन लता और तृतीय पुरस्कार मोनिशा बी ने जीता, तीनों विजेताओं को पुरस्कार के तौर पर यूनाइट फाउण्डेशन की ओर से क्रमश: 7000,5000, 4000 रूपए की स्कॉलरशिप के चेक प्रदान किए गया।

वहीं न्यूजटाइम्स और इन टू लीगल वर्ल्ड की ओर से सभी विजेताओं को मोमेंटो और कॉन्स्टीट्यूशन चार्ट दिए गए। सभी विजेताओं को पुरस्कार का वितरण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जस्टिस सुधीर कुमार सक्सेना और विशिष्ट अतिथि जस्टिस खेमकरन ने प्रदान किया।

इस अवसर पर ‘न्यायिक व्यवस्था में बदलाव’ विषय पर ही आयोजित पेपर प्रेजेन्टेशन प्रतियोगिता में एमिटी विश्वविद्यालय की तृतीय वर्ष के विधि छात्र प्रिन्स वर्मा ने प्रथम पुरस्कार, तो वहीं द्वितीय पुरस्कार लखनऊ विश्वविद्यालय की विधि छात्रा मंजरी सिंह ने और तृतीय पुरस्कार बहरा विश्वविद्यालय, शिमला के प्रणव कौशल ने जीता।

National Legal Competition के विजेताओं को मोमेंटो और कॉन्स्टीट्यूशन चार्ट दिए गए। इस प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर के 12 से अधिक शिक्षण संस्थानों के कुल 38 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था। सभी छात्र छात्राओं ने अपने प्रजेंटेशन के दौरान न्यायिक व्यवस्था में सुधार और समस्याओं को लेकर अपनी बात रखी।

और विभिन्न प्रकार के सुझाव भी दिए। अधिकतर स्टूडेंट्स ने अपनी प्रस्तुति में अदालतों में जजों की कमी, न्यायिक व्यवस्था में व्यापक भ्रष्टाचार, न्याय की मंहगी और थका देने वाली प्रक्रिया के साथ ही न्याय मिलने में होने वाली देरी जैसे मुद्दों को प्राथमिकता से उठाया।

दोनो National Legal Competition के प्रतिभागियों की प्रस्तुतियों का परिक्षण विभिन्न विशेषज्ञों ने किया जिनमें संयुक्त निदेशक, अभियोजन, रतन कुमार श्रीवास्तव, कॉरपोरेट कानून के विशेषज्ञ और हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रो0 आर0 पी0 शर्मा, उत्तर प्रदेश गौसेवा आयोग के पूर्व सचिव डॉ. प्रमोद कुमार त्रिपाठी, एमिटी लॉ स्कूल के असिस्टेंट प्रोफेसर, अंकित श्रीवास्तव, अनुमेहा सहाय, स्वाती सिंह परमार शामिल थे।

एमिटी लॉ स्कूल की एन्टरप्रेन्योर सेल की प्रमुख प्रो0 मीरा सिंह के साथ ही विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफसर, ट्रिब्यूनल के पदाधिकारी, और विधि विशेषज्ञों ने National Legal Competition के पुरस्कार वितरण समारोह में हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन आकांक्षा और गौरव ने किया।

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