विविध
LU लूट-खसोट में लगी है, इसको अपना हितैषी ना मानें
LU (लखनऊ विश्वविद्यालय) में छात्रसंघ चुनाव सन 2006 के बाद से नहीं हुए हैं।
मैं ज्योति राय, आपका साथी।
इसको लेकर लगातार आन्दोलन चलते रहे। यह 2017 का सत्र है।
2012 के सत्र में चुनाव कराने की घोषणा की गई थी।
और तब से अब तक आश्वासनों का एक भारी पुलिन्दा LU प्रशासन और सरकार ने आन्दोलनरत साथियों को थमाया है। आन्दोलन फिर शिथिल पड़ गया। वर्तमान में, मैं शहर से बाहर हूँ, मेरा यह पत्र महज इसलिए है, कि जब हवन हो रहा हो तो एक आहुति उसमें मेरी भी होनी चाहिए।
मैं स्वयं भी दो–चार रोज में आकर शरीक होने के साथ सक्रिय भागीदारी करूँगा। साथियों! LU (लखनऊ विश्वविद्यालय) छात्रसंघ बहाली मोर्चा को मैं बधाई देता हूँ की उन्होंने फिर से इस आन्दोलन के माध्यम से अपने हक-हुकूक की लड़ाई की शुरुआत की है।
सभी छात्र संगठनों ने दलगत राजनीती से अलग हटकर छात्रों के पक्ष में एकता और प्रतिबद्धता दिखाई है। सोशल मीडिया तथा खबरों के माध्यम से मैं आन्दोलन तथा संघर्षो से रू-ब-रु हो रहा हूँ। साथियों हमारा देश एक लोकतान्त्रिक देश है। यहाँ के मूल में लोकतंत्र की भावना निहित है।
छात्रसंघ भी उसी मूल भावना का हिस्सा है।
जो लोग छात्रसंघ के खिलाफ हैं, वास्तव में छात्रसंघ के ही नहीं लोकतंत्र के भी खिलाफ हैं। वे उनकी लूट उनके भ्रष्टाचार, छात्रों के शोषण के खिलाफ उठने वाली आवाज को दबा देना चाहते हैं। ताकि उनकी लूट जारी रहे और उसमें कोई बाधा न पैदा हो। लेकिन हम उन्हें उसमें कामयाब नहीं होने देंगे।
उन्होंने बहुत चालाकी से छात्रसंघों का दुष्प्रचार कियाl उसमें गुंडों का प्रवेश करा कर आम छात्रों नवजवानों को उससे अलग किया। ताकि छात्रों-नवजवानों में अपने ही संघ जो उनके हक–हकूक की बात करता है। उसके खिलाफ नफरत पैदा हो जाए और वे जब छात्रसंघो को बंद करें तो उनके खिलाफ कोई प्रतिरोधी ताकत खड़ी न हो। नतीजा यह हुआ की बेहिसाब फीस बढ़ी और छात्रों को उसके बदले आम सुविधाएँ भी नहीं मिलीं।
किताबें,पानी,टायलेट आदि का भी कोई इंतज़ाम नहीं है।
एक तो सरकारें वैसे ही नहीं चाहतीं की छात्र, उच्च शिक्षा लें और लगातार उच्च शिक्षा के बजट में कटौती कर रही हैं। ऊपर से जो बजट आता भी है उसका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
किसी प्रकार का कोई ऑडिट LU में नहीं होता है।
उन्होंने पूरे विश्विद्यालय को जर्जर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
छात्र/छात्राओं का शोषण होता है,लेकिन आवाज़ नहीं उठा सकते।
आवाज़ उठाने की जुर्रत करने वाले को धमका कर चुप करा दिया जाता है। इसमें आवाज उठाने और अपने सम्मान तथा अधिकार के साथ शिक्षा लेने का यदि कोई रास्ता है। तो वह छात्रसंघ है। एक स्वाभाविक सी बात है। जब शिक्षक संघ है, कर्मचारी संघ है। प्राचार्य संघ है, और वी० सी० के अपने क्लब हैं, तो छात्रसंघ क्यों नहीं ? अकेला व्यक्ति कमजोर होता है,और संघ एक ताकत। छात्र अकेला रहेगा तो कमजोर रहेगा।
छात्रसंघ ही LU छात्र की ताकत है।
आम छात्र किसान,मजदूर के परिवार से गावों तथा छोटे कस्बो से झोला अपने कंधो पर टाँगे पने भविष्य की बेहतरी का बोझ उस झोले में लादे हुए अपनी आँखों में सुनहरे सपने लेकर यहाँ आता है। तो उन्हें कोई हक नहीं कि वे उसके सपनों को चकनाचूर कर दें। असल में देखा जाए तो वे इसे लूटा जा सकने वाला सामान समझते हैं।
और सोचते हैं की मौका मिला है तो लूटो। जोकि अम्बानी-बिड़ला रिपोर्ट में साफ़-साफ़ दिखाई देता है। मैं आपको साफ़ बता देना चाहूँगा की इसमें आप सरकारों को अपना मित्र बिलकुल न मानियेगा। क्योंकि वे बिलकुल भी आपकी हितैषी नहीं हैं। इसके आप गवाह भी हैं कि किस तरह खाने और हॉस्टल के सवाल पर जो बिना मांगे ही मिल जाना चाहिए था।
सरकार ने ऐसी लाठियां चलाईं कि, चमडियाँ ही उधेड़ डालीं।
वो शरीर पर बने घाव के दाग,आपकी सरकार के खिलाएफ उठने वाली आवाज़ के दुश्मनी का प्रमाण हैं। मित्रों,ज़हन में बातें बहुत हैं। जो आने के बाद साझा करने का मौका मिला तो जरूर करूँगा। आपके संघर्षो के प्रति अपने जज्बातों को प्रेषित करता हुआ।
आपका साथी
ज्योति राय
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