Write Off नहीं किए पूंजीपतियों के Loan : जेटली
साइन अटैस्ट कराना हो, उसका चार्ज। कोई बैंक डाक्यूमेन्ट वैरीफाई कराना हो, उसका चार्ज। एटीएम से पैसे निकालने हों, उसका चार्ज। पैसे जमा करने हों, उसका चार्ज। पैसा निकालना हो, उसका चार्ज। डिजीटल ट्रांजेक्शन का भारी-भरकम चार्ज अलग से।
डिपाजिट्स पर ब्याज की दर एकदम नगण्य कर दी गई हैं। ब्याज दरों का कम किया जाना केवल उद्योगपतियों को लाभकारी होता है। क्यों कि वे हजारों करोड़ रूपया एकदम आधी ब्याजदरों पर प्राप्त कर लेते हैं और चुकाना तो उनको है ही नहीं।
फिर ब्याज की दरों को कम करने से किसका फायदा। गरीब तो बेचारा जमा करने में ही लगा रहता है। क्योंकि उसे पता नहीं कि-कर्ज लेके घी पियो, और मौज से माल्या की तरह जियो। जियो तो जियो है ही।
जब इन उद्योगपतियों के प्रोडक्ट की बिक्री की कीमत पर सरकार का कोई कन्ट्रोल नहीं है। अथवा रखना नहीं चाहती है,तो इन्हें सस्ते-से-सस्ती दरों पर कर्ज उपलब्ध कराके जनता के साथ छल क्यों किया जा रहा है?