जन संसदसत्ता पक्ष
केशव मौर्या बचा पाएंगे फूलपुर का किला?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के इस्तीफे से खाली हुई लोकसभा की गोरखपुर और फूलपुर सीट पर फिलहाल उप-चुनाव की घोषणा नहीं हुई है। सत्तारूढ़ भाजपा समेत तमाम दूसरे राजनीतिक दलों ने उपचुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं…..
मुख्यमंत्री की सीट गोरखपुर को लेकर भाजपा नेतृत्व आश्वस्त दिख रहा है। चिंता का सबब फूलपुर सीट है। अगर विपक्ष ने फूलपुर सीट पर साझा उम्मीदवार मैदान में उतारा तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ना लाजिमी है।
ऐसे में अहम सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी दोबारा फूलपुर में कमल खिला पाएगी। इस सीट के नतीजे उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का राजनीतिक कद भी तय करेंगे। फूलपुर सीट केशव प्रसाद मौर्या के लिये चुनौती बनी है।
फूलपुर सीट पर कांग्रेस और गैर भाजपा दलों का वर्चस्व रहा है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के संसदीय क्षेत्र फूलपुर में पहली बार जीत हासिल करने वाली भाजपा और यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के सामने इसे बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती है। इस सीट पर 2014 के चुनाव में भाजपा ने पहली बार जीत हासिल की थी।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1952 में पहली लोकसभा में पहुंचने के लिए इसी सीट को चुना था और लगातार तीन बार 1952, 1957 और 1962 में उन्होंने यहां से जीत दर्ज कराई थी। नेहरू के चुनाव लड़ने के कारण ही इस सीट को वीआईपी सीट का दर्जा मिल गया।
नेहरू के निधन के बाद इस सीट की जिम्मेदारी उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने संभाली और उन्होंने 1967 के चुनाव में जनेश्वर मिश्र को हराकर नेहरू और कांग्रेस की विरासत को आगे बढ़ाया।
लेकिन 1969 में विजय लक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद इस्तीफा दे दिया। यहां हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने नेहरू के सहयोगी केशवदेव मालवीय को उतारा लेकिन संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जनेश्वर मिश्र ने उन्हें पराजित कर दिया। इसके बाद 1971 में यहां से पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए।
आपातकाल के दौर में 1977 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने यहां से रामपूजन पटेल को उतारा लेकिन जनता पार्टी की उम्मीदवार कमला बहुगुणा ने यहां से जीत हासिल की। आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार पांच साल नहीं चली और 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए तो इस सीट से लोकदल के उम्मीदवार प्रोफेसर बी.डी.सिंह ने जीत दर्ज की।
1984 में हुए चुनाव कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने इस सीट को जीतकर एक बार फिर इस सीट को कांग्रेस के हवाले किया। लेकिन कांग्रेस से जीतने के बाद रामपूजन पटेल जनता दल में शामिल हो गए। 1989 और 1991 का चुनाव रामपूजन पटेल ने जनता दल के टिकट पर ही जीता।
पंडित नेहरू के बाद इस सीट पर लगातार तीन बार यानी हैट्रिक लगाने का रिकॉर्ड रामपूजन पटेल ने ही बनाया। 1996 से 2004 के बीच हुए चार लोकसभा चुनावों में यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जीत हासिल करते रहे हैं।
2004 में कथित तौर पर बाहुबली की छवि वाले अतीक अहमद यहां से सांसद चुने गए। अतीक अहमद के बाद 2009 में पहली बार इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने भी जीत हासिल की।
भाजपा के केशव प्रसाद मौर्य ने 2014 के लोकसभा चुनाव जीत कर इस सीट पर पार्टी का परचम लहराया था, लेकिन अब वह राज्य के उपमुख्यमंत्री बन गये हैं।
राज्य विधान परिषद की सदस्यता ग्रहण कर ली है। उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
फूलपुर सीट पर जीत भाजपा से ज्यादा मौर्य के लिये चुनौती मानी जा रही है, क्योंकि पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी उम्मीदवारी में आजादी के बाद पहली बार जीत हासिल की थी।
वह राज्य के उपमुख्यमंत्री और फूलपुर के पड़ोसी जिले कौशाम्बी के मूलरुप से निवासी हैं। उनका कार्य क्षेत्र इसी के इर्द गिर्द रहा है, इसलिये इस सीट का उपचुनाव उनका राजनीतिक कद भी निर्धारित करेगा।
केशव प्रसाद मौर्य को कुल पड़े मतों, नौ लाख 36 हजार 465 में से पांच लाख तीन हजार 564 मत हासिल हुये थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी (सपा) उम्मीदवार को एक लाख 95 हजार 256, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को एक लाख 63 हजार 710, कांग्रेस को 58 हजार 127, आम आदमी पार्टी को 7384 मत मिले थे, जबकि 8424 मत नोटा में पड़े थे।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अगर विपक्ष ने फूलपुर सीट पर साझा प्रत्याशी उतारा तो भाजपा की मुसीबत बढ़ना तय है। फिलवक्त विपक्षी दलों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उपचुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद ही तस्वीर साफ होगी। यहॉं ये बता दें कि पूर्व में केशव नाम के ही एक उम्मीदवार यहॉं से चुनाव हार चुके हैं।
-एनआईएस ब्यूरो
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