एनालिसिस
न्याय तो Judiciary में भी ढ़ूंढे नहीं दिख रहा
जबकि सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति ने पद पर टिके रहने के लिए समझौता किया। खन्ना ने राष्ट्र को बताया कि एक लोकतांत्रिक समाज के आधारभूत मूल्यों की मांग है कि हर व्यक्ति कुछ सावधानी दिखाए तथा त्याग के लिए तैयार रहे।
यह लक्ष्य भारत के लिए अभी भी दूर है। इन उदाहरणों के बावजूद न्यायपालिका Judiciary अपनी चमक को बरकरार नहीं रख पा रही है। न्याय पाने को लेकर लोगों का विश्वास दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है।
यह सिर्फ सुनवाई में होने वाली देरी के कारण नहीं, जैसा कि आज ही मैं पढ़ रहा था कि 35 वर्षों के बाद बैंक से किये गये फ्राड के लिए एक व्यक्ति को सजा सुनाई गई, लेकिन उसे सजा कब होगी पता नहीं, क्योंकि अब भी उसके पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने के अवसर मौजूद हैं। ये फैसला नीचे की लोअर कोर्ट ने सुनाया है।
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