साइबर संवाद

ईरान ने चाबहार बंदरगाह का भारत के साथ हुआ अहम समझौता तोड़ दिया

# यह बहुत बड़ी कूटनीतिक हार है, लेकिन देश का मीडिया देश की सामरिक व व्यापारिक हित की ही खबर डकार चुका है।

# नेपाल व मालदीप के बाद बांग्लादेश भी कभी भी बिदक सकता है। लेकिन यह खबरें आपको राष्ट्रवादी मीडिया में नहीं मिलेंगी।

भारत को ईरान ने एक बड़ा कूटनीतिक झटका देते हुए चार साल पहले हुए एक अहम समझौते को तोड़ दिया है। 4 साल पहले हुए ईरान और भारत के बीच ईरान के चाबहार बंदरगाह को लेकर एक बड़ा समझौता हुआ था।

चीन, भारत को जिस तरह से सामरिक रूप से लगातार घेरता जा रहा है, उसका एक बडा जवाब था चाबहार समझौता। लेकिन अमेरिका के साथ गलबहियां कर बैले डांस करती हुई भारतीय कूटनीति पड़ोसी देशों के मामले में रोज ही मात खा रही है।

श्री लंका ने भी हाल ही में फिर से चीन के साथ जिस तरह के रिश्ते जोड़े हैं, वह अच्छी खबर नहीं है लेकिन भारत का रीढ़विहीन मीडिया आराम के साथ “सरकारी चारा पगुरा” रहा है। न कोई खबर न कोई लेख…..ईरान ने इस संधि को तोड़ने के लिए एक बहाना बनाया कि भारत से मिलने वाले फंड में लगातार देरी हो रही है इसलिए वह अब खुद ही चाबहार बंदरगाह को विकसित करेगा।

चाबहार संधि, पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए बड़ा सिरदर्द थी। बंदरगाह के विकास के साथ-साथ 628 किलोमीटर रेल लाइन भी बिछनी थी जो अफगानिस्तान की सीमा तक सटे जाहेदान तक जानी है। इस रेलवे ट्रैक को ईरानियन रेलवेज और इंडियन रेलवेज कंस्ट्रक्शन लि0 को मिलकर बनाना था।

दरअसल इस शानदार परियोजना में अफगानिस्तान भी शामिल था। इस योजना के पूर्ण हो जाने के बाद भारत को न केवल अफगानिस्तान बल्कि मध्य एशिया में व्यापार के लिए एक वैकल्पिक रास्ता मिल जाता।

ईरान जैसा भारत का मित्र कब चीन के पाले में चला गया यह तो पता ही नहीं चला। यह तो तब पता चला जब अमेरिका के बड़े अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह खबर छापी कि ईरान ने चीन के साथ 400 अरब डॉलर की डील साइन कर ली है। चीन व ईरान का यह समझौता 25 सालों का है और इस 25 सालों तक ईरान चीन को बहुत ही सस्ती दरों पर क्रूड ऑयल सप्लाई करेगा। ईरान और चीन ने अमेरिकी धमकी को अनसुना किया और इस समझौते को लागू किया।

ईरान की समाचार एजेंसी है “तसनीम” । इस एजेंसी ने खबर फ्लो की कि समझौते के अनुच्छेद-6 के अनुसार ईरान और चीन ऊर्जा, तकनीक व इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाएंगे। हालांकि इस डील को अभी ईरान की संसद मजलिस से मंज़ूरी नहीं मिली है।

लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स के हाथ उक्त समझौते के 18 पन्नों के दस्तावेज लगे हैं। इनके अनुसार जून, 2020 को इस समझौते की रूपरेखा तय कर दी गई थी। समझौते के अनुसार चीन, ईरान के तेल और गैस उद्योग में 280 अरब डॉलर का निवेश करेगा साथ ही साथ ईरान में उत्पादन व परिवहन के ढांचे के विकास पर 120 बिलियन डॉलर ख़र्च करेगा।

यही नहीं वह ईरान में 5-G तकनीक के विकास के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर भी मुहैया कराएगा। अब जरा मसौदे के अंतिम बिंदु पर गौर फरमाएं, इसमें कहा गया है कि दोनों देश आपसी सहयोग से साझा सैन्य अभ्यास और शोध करेंगे।

भारत के तमाम रक्षा विशेषज्ञ और कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि भारतीय संदर्भों में यह बहुत ही बुरी खबर है। विदेश मंत्रालय में कार्यरत रहे मेरे मित्र और वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि चीन पाकिस्तान के कराची व ग्वादर बंदरगाह को सामरिक नजरिए से जिस तरह से विकसित कर रहा है वह भारत के लिए भविष्य में बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

इसका सबसे बड़ा तोड़ ईरान का चाबहार बंदरगाह था। इसका हाथ से चले जाना कूटनीतिक व सामरिक लिहाज से बहुत बड़ी हार है। आज़ादी के बाद से अब तक, भारत की विदेश नीति खेमेबाजी से दूर रही है। लेकिन विगत चार पांच सालों में भारत खेमेबाजी के चक्कर में खुद को बुरी तरह फंसा चुका है।

अमेरिका के लिए चाबहार बंदरगाह से या ईरान से संबंध होना न होना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन भारत के लिए है। भारत के लिए बेहतर होता, वो समूचे यूरेशिया को महत्व देता और खेमेबाजी से बचता….लेकिन हुआ उल्टा….। अमेरिका से चिढ़ा बैठा ईरान भारत से कन्नी काट रहा है।

जरा ईरान के विदेश मंत्रालय के एक बयान पर गौर करिए जिसमें कहा गया है कि चीन दुनिया की ताक़तवर अर्थव्यवस्था है। वह ईरान पश्चिमी एशिया की बड़ी ताक़त है। दोनों देश मिलकर धमकाने वाली ताक़तों को नेस्तनाबूद कर देंगी। सीधा सा इशारा अमरीका की ओर था।

ईरान से भारत के संबंधों में दूरी आना भारत के लिए बहुत मंहगा साबित होगा। रूस के बाद ईरान के पास सबसे ज़्यादा नैचुरल गैस रिज़र्व है और कच्चे तेल के मामले में भी ईरान, सऊदी अरब के बाद दूसरे नंबर पर है। यानी कि चीन, ईरान के कंधे पर बंदूक रखकर सऊदी अरब को चुनौती देना चाहता है।

यह हर भारतीय को याद रखना चाहिए कि ईरान भारत को सस्ती दरों पर तेल देता आया है और उसने भारतीय हितों को पाकिस्तान से ज्यादा हमेशा महत्व दिया। नेपाल से भी भारत के रिश्ते बेहद नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। हाल ही में श्रीलंका फिर से चीनी गोद में चला गया।

चीन के सरकारी बैंकों का कर्ज न चुका पाने के कारण श्रीलंका ने हम्बननोटा बंदरगाह 100 वर्ष के लिए चीन को लीज पर देना पड़ा है । मालदीव के साथ भी कभी भारत के अच्छे संबंध थे। 1988 में भारत ने मालदीव में तख्ता पलटने का प्रयास विफल किया था, लेकिन यह देश फिर से चीन के पाले में जा चुका है।

चीन एकमात्र देश है जिसके साथ बंगलादेश ने रक्षा समझौता किया है। चीन ने बंगलादेश के 5161 उत्पादों को 97 प्रतिशत तक टैरिफ मुक्त करने की घोषणा करके बांग्लादेश को फंसा लिया है। यानी कि भारत जल्द ही बंगलादेश को भी गंवाता दिखाई दे रहा है।

Pawan Singh
Pawan Singh

पत्रकार पवन कुमार सिंह की वॉल से

(National Herald, Dainik Jagran, Rashtriya Sahara,
Hindustan में बतौर संवाददाता कार्य कर चुके एवं Outlook के
कॉपी एडीटर रहे श्री सिंह एक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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