हेगिया सोफिया,और तीन फेवरिट्स
पीटर द ग्रेट, जवाहरलाल नेहरू और कमाल अतातुर्क। तीन दौर और तीन तौर के-ये तीन लीडर्स हैं जिन्होंने एक नए राष्ट्र को जन्म दिया है।
यूरोप से बाहर जन्मे, लेकिन यूरोपीयन आइडियल्स और जीवन शैली से बेहद प्रभावित। अपने-अपने देश को सांस्कृतिक, औद्योगिक और परम्परागत जड़कन से बाहर निकालने वाले धुरन्धर। अपने-अपने तरीके से .. अपने देश को मॉडर्नाइज किया।
सत्रहवीं सदी में रूस की कमान संभालने वाले बादशाह पीटर ने रूस का आकार बढ़ाया। नये शहर बसाए, एक लैंड लॉक्ड देश के लिए समुद्र तटों वाले इलाके जीते। पोर्ट, अंतराष्ट्रीय व्यापार, उद्योग, विज्ञान की शिक्षा, सामाजिक खुलापन और औऱ विकसित समाज लाने के लिए डिक्टेटोरियल ताकत का इस्तेमाल किया।
पीटर, धर्म औऱ परम्परा के नाम पर दकियानूसी तत्वों से यूं निपटा, की दाढ़ी रखने पर टैक्स लगा दिया। चोगा पहनने वालों के कपड़े फड़वा कर सरेआम नंगा कर दिया। सोसाइटी को जबरन धकियाते हुए वह रूस को ताकत के उस थ्रेशोल्ड पर ले गया, कि आज 200 साल बाद भी, उसका देश एक वैश्विक ताकत है।
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कमाल अतातुर्क, एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे फौजी लीडर ने डूबते ओटोमन एम्पायर की लड़ाइयां लड़ीं। खुद अपनी बैटल्स जीती, मगर देश हार गया। सरकार की मर्जी के खिलाफ जाकर उसने आक्रान्ताओं से लड़ना जारी रखा, अपनी सरकार बना ली। अंततः पूरे तुर्की का लीडर बना और एक नये देश का भूगोल तय किया।
और फिर बदल दिया तुर्की को। एक पिछड़ी कृषिगत सोसायटी को औद्योगिक, पाश्चात्य शिक्षित, मॉडर्न देश मे सिर्फ 20 साल में ऐसा बदला, कि यूरोप भी रश्क करे। कट्टर मुस्लिम धारणाओं को तोड़ने के लिए उसने सीधे प्रहार किए।
इस्लाम के मठाधीश बने खिलाफत को खत्म किया। शरिया कोर्ट औऱ इस्लामी लॉ की जगह कॉन्सटीट्यूशनल कोर्ट्स शुरू की। पवित्र अरबी की जगह कुरान का तुर्की अनुवाद कराया। लोग खुद पढ़ने, समझने लगे, तो कुरान की असल शिक्षाओं को जानने के लिए मुल्लों का सहारा न लेना पड़ा।
उल्टी बाल्टी जैसी फुदनेदार पारम्परिक टोपी की जगह हैट एक्ट लाया, बुर्का बंद किया और देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया। चोगा छोड़, यूरोपियन पोशाक, अरबी छोड़ लैटिन, अंग्रेजी और विज्ञान की शिक्षा को बढ़ाया। खुद को तुर्की का “टीचर इन चीफ” कहता था। उसने एक और एक बड़ी चोट की। सदियों तक चर्च रहे, और फिर मस्जिद में कन्वर्ट कर दिए गए हेगिया सैफिया को म्यूजियम बना दिया।
नेहरू!! एक नया देश, पिछड़ा, धार्मिक-सांस्कृतिक कुंजड़ औऱ कुंठाओं से घिरे समाज को विज्ञान, धर्मनिरपेक्षता, कॉन्सटीट्यूशन, सहिष्णुता, इंस्टीट्यूशन डेवलमेंट का पाठ पढ़ाया। वह जमीन तैयार की जिससे छोटे-छोटे धार्मिक सांस्कृतिक देशों का यह बिखरा-बिखरा ढेर, एक देश होकर एक सूत्र में बंध गया।
इस उबड़-खाबड़ भूमि को समतल होने में चालीस साल लगे। उस पर जब विकास की रेल बिछी तो 90 की स्पीड से दौड़ी। नेहरू ने ताकत नही, मुस्कान का इस्तेमाल किया। अतातुर्क जो चाहते थे, कहते थे, वो नेहरू कर गए। वे क्या चाहते थे-” मैं ताकतवर हूँ, यह ठीक है। मगर मैं दिलों को जीतकर रूल करना चाहता हूँ, दिलों को तोड़कर नही।
तीनों में एक रियलिटी थी, एक फौजी तानाशाह, एक डेमोक्रेटिक। तरीके तीन, सपना एक.. देश का पूर्ण सांस्कृतिक-शैक्षणिक-आर्थिक रद्दोबदल। तीनों का विरोध भी हुआ, मगर तीनों को सत्ता जाने का कोई भय नहीं था। सो धर्म को धर्म से, क्लास को क्लास से या जाति से लड़ाने की कम्पलशन उनमें नहीं थी। सोच सत्ता बचाने की नही, देश बनाने की थी।
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तीनों की लिगेसी जारी है। पीटर के शहर का मेयर, आज रूस का जार है। उसने पीटर को आत्मसात कर लिया है। पीटर का नया रूप हो गया है। उसे सत्ता खोने का भय नहीं। तो सोच देश बनाने और बढ़ाने की है।
मगर तुर्की और भारत मे भयभीत सत्ताएं हैं। यूं चुनौती कोई नही, मगर लीडर के भीतर खालीपन है। भय है। वह चुनाव दर चुनाव सीटें गिनता है। राज्य दर राज्य, सरकारें गिनता है। वह 2024 की तैयारियों में है, वह 2029 की तैयारियों में है, वह 2034 की तैयारियों में भी है।
वह अतातुर्क और नेहरू को आत्मसात करना चाहता है, वैसा बनना चाहता है, मगर सत्ता में आया ही उन्हें गालियां देकर। सो उनके खड़े किए प्रतीकों पर चोट करना मजबूरी है। वह एंटीअतातुर्क और एंटीनेहरू बनकर उनसे आगे निकलना चाहता है। दिलों को जीतकर नहीं, दिलों को तोड़कर बड़ा बनना चाहता है।
तो क्या आश्चर्य? कि अतातुर्क की तस्वीर लगाना एर्डोगन का विरोध हो जाता है, नेहरू की तस्वीर मोदी की मुखालफत। दोनों देश, धर्म और इतिहास के सूख चुके घावों को कुरेद रहे हैं। डरे हुए मुँहबली, संस्कृति के पोषण के नाम पर एंटी-साइंस, एंटी-सेकुलरिज्म, एंटी-फेमिनिज्म, एंटी-इक्वलिटी की नीतियों के साथ दकियानूसी परम्पराओं, और विभाजन को हवा दे रहे हैं।
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भाग्यशाली हूँ कि इनमें से दो की धरती देखी है, तीसरे में रहता हूँ। दुर्भाग्यशाली हूँ कि उनकी लीगेसी की अनमेकिंग, अपनी रहती जिंदगी देख रहा हूँ। हमारा उच्चतम कोर्ट.. “मन्दिर वहीं बनाएंगे” के उदघोष में शामिल हो चुका है।
उनकी सरकार हेगिया सैफिया म्यूजियम को फिर मस्जिद बना चुकी है।