Great lord madhavadev-महान विभूति
केवलिया भक्त विवाह नहीं करते हैं, सत्र में ही रहते हैं। उन्होंने असमिया और ब्रजावली में रचनाएं की हैं। ब्रजावली में उनकी ग्यारह रचनाएं हैं।
डॉ० कृष्णनारायण प्रसाद मागध ने उनके गीतों का मूल्यांकन करते हुए लिखा है कि गीतिकाव्य का संपूर्ण माधुर्य माधवदेव के गीतों में व्याप्त है। दैन्य और आत्म-निवेदन के गीत जहां ह्दय को बेधते हैं, वहीं कृष्ण की बाल-क्रीड़ा से संबंधित पद्य नवीन रूप में उल्लसित भी करते हैं।
कृष्ण की चतुराई, ढ़िठाई,बतकटई, बहानेबाजी, छेड़छाड़, जिद आदि ऐसी अनेक मनोहारी चेष्ठाएं हैं, जिनके कवि कर्म और कौशल अष्टछाप शिरोमणि सूरदास से भी टक्कर लेता हुआ प्रतित होता है।
माधवदेव के नाटकों का विषय बालक कृष्ण ही है। उनके कथानक के तीन स्त्रोत हैं भागवत विल्व मंगल स्त्रोत एवं निजी मौलिक कल्पना अजुर्न भंजन एवं अंकीय अंकीया है और शेष की संज्ञा झुमुरा है। माधवदेव के नाटक अपेक्षया छोटे हैं।
उनका लालित्य और वास्तविक सौंदर्य उनके यथार्थपरक, लघु और रोचक संवादों में अंतर्निहित है। भाषिक दृष्टि से भी इनके ब्रजवाली-साहित्य का अधिक महत्व है।