साइबर संवाद

गांधी परिवार के ट्रस्ट की जांच शुरू

एक बार फिर केंद्र सरकार ने गांधी परिवार की कई तरह की जांच शुरू करा दी है। इसके पहले भी नेहरू खानदान पर आर्थिक भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं। यह आरोप चिपक नहीं सके हैं, कभी नहीं। आगे भी नहीं चिपक सकते। इसकी वजह यह है कि जवाहरलाल नेहरू ने जब इलाहाबाद स्थित अपना खानदानी महल आनन्द भवन सरकार को दान दे दिया था, तबसे इस परिवार के नाम जमीन का कोई टुकड़ा तक नहीं है।

इंदिरा गांधी जब 1977 में चुनाव हार गईं तो उनके पास न रहने की जगह थी न खाने के पैसे। उस समय के कांग्रेस के नेता आर0के0 धवन के मकान में उन्होंने ठिकाना तलाशा। वही आर0के0 धवन, जो गांधी को 84 में गोली लगने पर एम्स लेकर गए थे।

आज भी सोनिया या राहुल गांधी एक खुली किताब हैं। उनके पास जो भी चवन्नी अठन्नी है, वह सब सरकारी एजेंसियों को पता है। जहां तक प्रियंका का मामला है, उनके पति खानदानी बिजनेसमैन हैं, जो कई दशक से कारोबार में लगे हैं। प्रियंका भी इस कदर निडर हो गई हैं कि अगर सरकार कोई किसी प्रकार का आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप लगाती है तो उसी दिन कह सकती हैं कि सरकार हमारी पूरी सम्पत्ति जब्त करके उसे देश की जनता के नाम कर दे, हमें कोई आपत्ति नहीं है। शून्य से वह शुरुआत कर दें, यह सम्भव है।

अब कांग्रेस की संस्कृति और उसके ऊंचे नैतिक मापदंड समझने के लिए यूपी के गोरखपुर अंचल के कुछ नाम बता रहा हूं।

एक जमाने में गोरखपुर के फरेंदा विधानसभा (अब महराजगंज जनपद) से एक कांग्रेस विधायक हुआ करते थे गौरीराम गुप्ता। वह करीब 5-6 बार विधायक रहे। उनके बेटे को चाय के पैकेट बनाकर उसे मोपेड पर लादकर बेचते हुए इलाके के लोगों ने देखा है। फरेंदा में इस समय काँग्रेस के नेता त्रिभुवन नारायण मिश्र हैं, जो पेशे से किसान हैं और अपना पैसा खर्च करके राजनीति करते हैं।

उसी तरह स्वतंत्रता के समय एक नेता हुआ करते थे अक्षयबर सिंह। वह पूर्वांचल में टिकट बांटते थे, संगठन का काम देखते थे। किसी पद प्रतिष्ठा के लिए कोई मारामारी किये बिना सरकार, कमाई, सम्पत्ति बनाने से कोसों दूर रहकर वे कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ता बने रहे। वह तब तक पिपराइच विधानसभा से चुनाव जीतते रहे, जब तक उन्होंने खुद चुनाव लड़ने से मना नहीं कर दिया।

फरेंदा पूर्व से एक से अधिक बार विधायक हुये और आरएसएस के गढ़ गोरखपुर से तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ को शिकस्त देकर कांग्रेस से सांसद चुने गए नरसिंह नारायण पांडेय हों या कांग्रेस के जिलाध्यक्ष और कई बार एमएलए-एमएलसी रहे बाबू रामअवध सिंह, कई दफा विधायक रहे लालचंद निषाद हों या मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह के खास कहे जाने वाले मानीराम के पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय, किसी ने भी कोई सम्पत्ति नहीं बनाई। इनमें से कईयों ने तो राजनीति के लिए अपनी पुस्तैनी सम्पत्ति तक बेच दी है।

MLA Haridwar Pandey ji
MLA Haridwar Pandey ji

संयोग देखिये, अभी जब यह पोस्ट लिख रहा हूं ठीक उसी समय सूचना मिल रही है है कि पूर्व विधायक श्री हरिद्वार पांडेय का खपरैल का पुराना घर बारिश से गिर गया है। 86-87 बरस की उम्र में अभी भी पूरी शिद्दत के साथ सक्रिय पांडेय जी अपने परिवार के साथ उसी मकान में रहते हैं। अब वे सड़क पर हैं। इनकी नैतिकता के मानदंड इतने ऊंचे हैं कि मुख्यमंत्री का सबसे नजदीकी विधायक होने के बावजूद इन्होंने अपने लिये कोई सम्पत्ति नहीं बनाई, एक मकान तक नहीं।

यह सब नाम इसलिए लिया ताकि लोगों को पता चल सके कि सोनिया सत्ता में रहें या गुमनामी में मर जाएं, कोई भी देश की सम्पदा से दुनिया की सैर करने वाला उनसे मुकाबला नहीं कर सकता। कम से कम सोनिया से उच्च नैतिक आदर्श वाला व्यक्ति ही टकरा सकता है।

इस सरकार को सोनिया की जांच में तो कुछ नहीं मिलने वाला। वैसे तो आरएसएस के लोग सोनिया वेश्या है, बार बाला है, भारत का पैसा लूटकर इटली में जमा कर रखा है, यही सब व्हाट्सऐप से प्रचारित कराए, जैसा वह दशकों से मौखिक रूप से करती रही है। जांच वगैरा से कुछ होता तो अटल बिहारी या नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में ही सोनिया को जेल में बंद कर दिया होता।

MLA's broken house
MLA’s broken house

फोटो परिचय : पूर्व विधायक हरिद्वार पांडेय और उनका मकान

आलोक शुक्ला
(वरिष्ठ पत्रकार की वॉल से)

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