साइबर संवाद

प्रकृति Fire Crackers छोड़ेगी तब बात समझ में आएगी

दिल्ली एनसीआर एक चेतावनी है मान जाइए वरना सर्वोच्च न्यायालय और पूरी न्यायपालिका ने यदि प्रकृति की सुरक्षा का पूरा जिम्मा अपने ऊपर ले लिया तो आप ज्यादा परेशान हो जाएंगे। मानवीय गतिविधियों से वैसे भी प्रकृति हमसें रूठी हुई है। क्यों न हम यह दिवाली अपने पर्यावरण के नाम कर दें? छोटी ही सही, पर शुरुआत तो करें…..

  आशीष वशिष्ठ

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देश के सबसे घनी आबादी वाले शहर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लगातार दूसरे साल भी दिवाली के मौके पर सर्वोच्च न्यायालय ने Fire Crackers पर प्रतिबंध बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट के Fire Crackers पर पाबंदी से लोगों में खासकर सोशल मीडिया में नाराजगी देखने को मिल रही है। दिल्ली की तर्ज पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई के रिहायशी इलाकों में अस्थायी Fire Crackers विक्रेताओं को पटाखे की ब्रिकी की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। अदालत के इस फैसले का पटाखा चलाने पर असर नहीं पड़ेगा। लोग नियमित पटाखा विक्रेताओं से Fire Crackers खरीद सकेंगे।
पटाखों पर अदालत की पाबंदी के बाद सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों पर बहस के साथ राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गयी है। पिछले वर्ष दिल्ली में दीवाली के दिन प्रदूषण का सुरक्षा स्तर सामान्य से सात गुना तक अधिक दर्ज किया गया था। दिल्ली व उसके आस-पास के इलाकों में लगातार बढ़ते प्रदूषण की वजह से अर्जुन गोपाल और दो अन्य बच्चों की तरफ से वकील पूजा धर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई गई थी कि पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई जाए। इसी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर एक नवंबर तक प्रतिबंध लगा दिया है। कोर्ट ने कहा कि दिवाली के बाद इस फैसले से हुए प्रभाव का अवलोकन किया जाएगा और देखा जाएगा कि पटाखों पर बैन के बाद हवा की हालत में कुछ सुधार हुआ है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि एक नवंबर के बाद पटाखों की बिक्री फिर से शुरू की जा सकती है।

नागारिकों को साफ-स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराने के हिसाब से सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला स्वागत योग्य है, क्योंकि पटाखों से फैले वायु प्रदूषण का प्रभाव दिल्ली की जनता पहले भी झेल चुकी है। बीते साल दीवाली से अगले दिन जब दिल्लीवासियों ने आंखें खोली थीं तो उन्हें चारों और धुआं ओर धुंध ही दिखाई दी थी। पटाखों के धुंए के बाद पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने से पैदा हुये धुएं ने दिल्लीवासियों को घर बैठने को मजबूर कर दिया था।
हम जानते हैं कि हर साल दीपावली पर करोड़ों रुपए के पटाखों का उपयोग होता है। यह सिलसिला कई दिन तक चलता है। कुछ लोग इसे फिजूलखर्ची मानते हैं, तो कुछ उसे परंपरा से जोड़कर देखते हैं। पटाखों से बसाहटों, व्यावसायिक, औद्योगिक और ग्रामीण इलाकों की हवा में तांबा, कैल्शियम, गंधक, एल्युमीनियम और बेरियम प्रदूषक फैलते हैं। इन धातुओं के अंश कोहरे के साथ मिलकर अनेक दिनों तक हवा में बने रहते हैं। उनके हवा में मौजूद रहने के कारण प्रदूषण का स्तर कुछ समय के लिए काफी बढ़ जाता है।
पटाखों में बारूद, चारकोल और सल्फर के केमिकल्स का इस्तेमाल होता है जिससे पटाखे से चिनगारी, धुआं और आवाज निकलती है, इनके मिलने से प्रदूषण होता है। दीपावली पर चलने वाले पटाखों से वायुमंडल में फैलने वाली विषैली गैस से जन स्वास्थ्य को भारी खतरा होता है। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि आतिशबाजी से प्रदूषण में करीब 85 फीसदी इजाफा हो जाता है। आतिशबाजी से निकली गैस श्वांस नलिका के जरिए प्रवेश कर अस्थमा व एलर्जी बढ़ा देती है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध करते व्यापारी
विशेषज्ञों के अनुसार पटाखों से वातावरण में सल्फर डाई आक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रोजन व मीथेन तथा अन्य गैस निकलती है। ये गैस वायुमंडल में हवा के साथ फैल जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। इनसे बचाव बहुत जरूरी है। डॉक्टर भी मानते हैं कि दिवाली के बाद अचानक दिल के मरीजों की तादाद अस्पताल में बढ़ जाती है। धुएं में पाए जाने वाले सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रो ऑक्साइड जैसे केमिकल एलिमेंट की वजह से अस्थमा, लंग्स, सांस संबंधी, हार्ट, आंख, चेस्ट वगैरह की दिक्कतें हो सकती हैं। यूं कहें कि दिवाली का धुआं बीमारी लेकर आता है तो गलत नहीं होगा।
देश में वायु प्रदूषण चरम पर पहुंच चुका है। इसका सबूत हैं वे छोटे-छोटे बच्चे, जो मुंह पर मास्क लगाए निकल कर अपने स्कूल जाते हैं। सच कहें तो उन्हें देखकर पहला सवाल दिमाग में यही उठता है कि यह तो उनका वर्तमान है। ऐसे में उनका भविष्य क्या होगा? देश में वायु प्रदूषण का स्तर खतरे के निशान तक पहुंच चुका है। बड़े शहरों में तो स्थिति और भी डराने वाली है। अगर कभी ट्रैफिक में फंस जाएं तो सांस लेना दूभर हो जाता है। हर वर्ष लाखों जिंदगियां इस प्रदूषण की भेंट चढ़ जाती हैं और कइयों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इतना सब होने के बाद भी हम चेते नहीं हैं।
विदित है कि विभिन्न कारणों से देश के अनेक इलाकों में वायु प्रदूषण सुरक्षित सीमा से अधिक है। ऐसे में पटाखों से होने वाला प्रदूषण, भले ही अस्थायी प्रकृति का होता है, उसे और अधिक हानिकारक बना देता है। क्या पटाखे फोड़ने से ही दीपावली मनाना संभव है? क्या बिना पटाखों के दीपावली नहीं मनाई जा सकती है? क्या पटाखों के जरिए हम अपने रुपयों में आग नहीं लगा रहे? क्या पटाखे फोड़कर हम पर्यावरण प्रदूषण नहीं फैला रहे? क्या पटाखे फोड़ लेने से ही दीपावली की खुशियां मिलना संभव है? हमारे धर्म ग्रंथों में भी दीपावली पर दीये जलाने की बात कही गई है। आतिशबाजी का कहीं कोई जिक्र नहीं है। हमारे पूर्वजों ने भी इन्हीं का पालन किया और दीये जलाकर, रंग-बिरंगी रोशनी के माध्यम से इस पर्व को खुशी की सौगात दी है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें तो अलग-अलग क्षेत्र के लिए पटाखों के होने वाले ध्वनि प्रदूषण के लिए मानक निर्धारित कर रखे हैं। इनमें वाणिज्य क्षेत्र वाले इलाकों में 65 डेसिबल, औद्योगिक क्षेत्र में 75 डेसिबल और आबादी वाले क्षेत्र में 55 डेसिबल तक के पटाखे होने चाहिए। आज लोग इन मानकों पर ध्यान नहीं देते हैं। एक निर्धारित सीमा से अधिक आवाज से सुनने की शक्ति प्रभावित हो जाती है। पटाखों से ध्वनि प्रदूषण भी बहुत होता है। आमतौर पर पटाखों से 75 डेसिबल ध्वनि होती है। जो कानों के लिए नुकसान दायक है। 30 से 35 डेसिबल तक के धमाके नुकसानदायक नहीं होते। अधिक तेज आवाज वाले पटाखों से कान का पर्दा फटने और बहरापन होने की आशंका रहती है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट देखना चाहता है कि पटाखों के कारण प्रदूषण पर कितना असर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि Fire Crackers की बिक्री 1 नवंबर 2017 से दोबारा शुरू हो सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में Fire Crackers की बिक्री पर बैन लगा दिया था। लेकिन 12 सितंबर 2017 को पटाखों की बिक्री से बैन हटा लिया था। उधर पटाखे बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि Fire Crackers पर बैन लगाना तो ठीक है लेकिन इसके लिए उन्हें थोड़ा समय मिलना चाहिए था।
उल्लेखनीय है कि भारत का संविधान रेखांकित करता है कि स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराना केवल राज्यों की ही जिम्मेदारी नहीं है अपितु वह प्रत्येक नागरिक का दायित्व भी है। आर्टिकल 48 अ और आर्टिकल 51 अ (जी) तथा आर्टिकल 21 की व्याख्या से उपर्युक्त तथ्य उजागर होते हैं। असल में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के पीछे भविष्य के लिए एक बेहतर प्रयास जुड़ा है। थोड़ा प्रयास आप भी करें। आप सभी जानते हैं कि प्रदूषण से नुकसान हो रहा तो इस निर्णय को नजीर मानें और संपूर्ण भारत में अमल में ले आएं। वहीं सवाल यह भी है कि अन्य प्रदूषण के जो कारक हैं उनका परित्याग करने के लिए आप न्यायालय के निर्णय का इंतजार क्यों कर रहे हैं?
दिल्ली एनसीआर एक चेतावनी है मान जाइए वरना सर्वोच्च न्यायालय और पूरी न्यायपालिका ने यदि प्रकृति की सुरक्षा का पूरा जिम्मा अपने ऊपर ले लिया तो आप ज्यादा परेशान हो जाएंगे। असल में इस फैसले को संपूर्ण भारत में लागू किया जाना चाहिए ताकि देश प्रदूषण एवं श्वास विकार की समस्या से बच सके। यह फैसला दिवाली पर ही क्यों ? बाकी त्योहार, क्रिसमस, नए साल पर, खुशी के मौके इत्यादि अवसरों पर भी आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। हमें सर्वोच्च न्यायालय के इस लोकहित फैसले को हिंदू-मुस्लिम दृष्टिकोण से न देखते हुए मानवीय नजरिया रखते हुए ‘शुभ दीपावली, अशुभ पटाखा’ की परंपरा की शुरुआत कर देनी चाहिए। मानवीय गतिविधियों से वैसे भी प्रकृति हमसें रूठी हुई है। क्यों न हम यह दिवाली अपने पर्यावरण के नाम कर दें? छोटी ही सही, पर शुरुआत तो करें।

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