पंचतंत्र

ढोल की पोल पार्ट-1

गतांक से आगे……………..

‘तो यह समझिए कि केवल आवाज से ही किसी की धौंस में नहीं आ जाना चाहिए। अभी आप को न तो घबराना चाहिए न डरना।’

शेर ने कहा, ‘‘अकेले मेरी बात होती तब तो कोई चिंता ही नहीं थी। तुम तो देख ही रहे हो, मेरे सारे अमला-अफसर डरे हुए हैं। वे मुझे और इस स्थान को छोड़ कर भाग जाना चाहते हैं। फिर इस दशा में कोई धीरज से कैसे काम ले सकता है।’

पिंगलक ने सोचा होगा कि उसे दमनक की सहानुभूति मिलेगी पर सुनने को मिली उसकी खरी-खोटी। उसने कहा, ‘स्वामी, इसमें उन बेचारों का क्या दोष है? जैसा मालिक वैसे नौकर-चाकर।

जिस राह पर राजा जाएगा उस राह पर उसके सेवक भी जाएंगे।’ उसने ऊपर से एक शूक्ति भी जड़ दी। ’घोड़ा, शस्त्र, शास्त्र, वीणा, वाणी, नर और नारी इनमें विशेष पुरुषों के सम्पर्कं में आने के कारण ही गुण-दोष दिखाई देते हैं।’

‘जैसे आप वैसी आपकी प्रजा। आप जी कड़ा करके इन सबको संभाले हुए यहीं पड़े रहें। इस बीच मैं जा कर पता लगाता हूं कि यह आवाज किसकी है और वह जीव कितना डरवाना है।’

पिगंलक की जान में कुछ जान आई। उसने पूछा, ‘ क्या आप सचमुच खुद जाना चाहते हैं ?’

दमनक बोला, ‘आपकी आज्ञा हुई तो जाना तो होगा ही। सच्चे सेवक को स्वामी की आज्ञा मिल जाए तो यह सोचने का सवाल ही नहीं होता कि इसका पालन करुं या नहीं।

यह मैं अपने मन से गढ़ कर नहीं कह रहा हूं। सेवा धर्म ही यही है। कहते हैं, स्वामी की आज्ञा के बाद तो सेवक के मन में भय का लेश तक नहीं रह सकता। आज्ञा होने पर वह सांप के मुंह में भी प्रवेश कर सकता है और समुद्र में भी छलांग लगा सकता है।

‘सच बात तो यह है कि राजा उल्टा-सीधा जो भी हुक्म दे, यदि कोई सेवक उसका पालन नहीं करता तो राजा की भलाई इसी में है कि वह ऐसे सेवक की छूट्टी कर दे।’

पिंगलक ने कहा, ‘‘आप सचमुच जाना ही चाहते हैं तो जाएं। भगवान आप का भला करें।’’
दमनक पिंगलक को माथा टेक कर उस दिशा में चला जिधर से संजीवक की आवाज आ रही थी।

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