पंचतंत्र

PanchTantra की कहानी-King & Damanak भाग-16

Damanak कहता जा रहा था, राजा अपने सेवकों से प्रसन्न होगा तो अधिक से अधिक उन्हें क्या देगा? पैसा ही न? पर राजा से आदर पाने वाले सेवक तो राजा के लिए अपने प्राण तक दे देते हैं।

अब Damanak बहाने-बहाने से अपनी धाक भी जमाने लगा, राजा को यह सब सोच कर ही अपने सेवक नियुक्त करना चाहिए कि वे बुद्घिमान, कुलीन और बहादुर तो हैं न। उनके कुल की रीति क्या रही है?

वे जिस काम पर लगाए गए हैं उसे कर भी सकते हैं या नहीं। वे राजा के प्रति निष्ठा तो रखते हैं? Damanak कहता है कि जो सेवक यह सोच कर कि इसमें राजा की भलाई है, कठिन से कठिन काम करने के बाद भी यह नहीं जताते कि उन्होंने कुछ किया भी है, दूसरों से इसका ढिढोरा नहीं पीटते, राजा को केवल उन्हीं के प्रति कृपा भाव रखना चाहिए।

Damanak बोला, महाराज, सेवक तो ऐसा होना चाहिए कि जिसको कोई काम सौंपने के बाद उधर से पूरी तरह निश्चिंत हुआ जा सके। सच्चा सेवक तो मेरी तरह बिना बुलाए, अपने आप ही, सेवा के लिए पहुंच जाता है।

ड्योढ़ी के भीतर पांव नहीं रखता, बराबर बाहर ही खड़ा रहता है, कुछ पूछने पर मेरी (Damanak)  तरह सच बात को बिना लाग लपेट कह सुनाता है।

सच्चे सेवक को तो यदि ऐसा लग जाए कि किसी बात से राजा को हानि हो सकती है तो राजा कहे या न कहे, वह अपनी ओर से ही उसे जड़ से मिटाने पर जुट जाता है।

बात इतनी ही नहीं है, उसमें सहनशीलता भी ऐसी होनी चाहिए कि राजा उसे गाली दें, डराएं, मारें-पीटें या दंडित करें तो भी वह राजा का बुरा करने का विचार तक मन में ना लाए।

उसे आदर मिले तो इतरा न उठे, अनादर हो तो जल-भुन न उठे, न गर्वं कुरुते माने, नापमाने च तप्यते। और सबसे बड़ी बात यह कि राजा का भेद किसी के साथ न खोले, ऐसा कहना था Damanak का।

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