चीन ने एलएसी पार खड़ी की 40 हजार सैनिकों की फौज
किसी भी देश की सेना की एक निश्चित पारंपारिक भूमिका होती है। शत्रु देश के खिलाफ आवश्यक होने पर युद्ध लडना, अपने देश की संप्रभुता की रक्षा करना इत्यादि इसमें शामिल है। लेकिन अपने विस्तारवादी नीति के कारण बदनाम हो चुके चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का जो पारंपरिक कार्य है, वह केवल उसे ही नहीं करती। इसी के साथ वह शत्रु के खिलाफ लडाई लडने तथा अपनी विस्तारवादी नीति को आगे ही नहीं बढाती बल्कि विभिन्न देशों का विभिन्न उपायों से घेराबंदी करने के काम में भी लगी रहती है।
चीनी सेना (पीएलए) अपनी चीनी कंपनियों के जरिये विभिन्न देशों में भारी मात्रा में आर्थिक निवेश भी करती है तथा उस देश की अर्थव्यवस्था में कुछ सीमा तक नियंत्रण करने का प्रयास भी करती है। केवल इतना होता तो शायद कोई बात नहीं थी, क्योंकि बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी यही काम तो करती हैं। चीनी सेना इन कंपनियों के जरिये उन देशों की खुफिया जानकारी व डाटा हासिल करती हैं।
पीपुल्स लीबरेशन आर्मी? चीन की बड़ी कंपनियों में भारी निवेश करती है। ये कंपनियां अन्य देशों में पूंजी निवेश करती हैं। विशेषकर टेलिकाम व अन्य स्ट्रैटजिक क्षेत्रों में ये चीनी कंपनियां, निवेश करती हैं। फिर इन कंपनियों के कर्मचारी व अधिकारी खुफिया जानकारी और डाटा, चीनी सेना के लिए चोरी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसका यह मतलब हुआ कि, ये कंपनियां प्रकारांतर में व्यवसाय के नाम पर चीन के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए कार्य करती हैं। लेकिन जिन देशों में यह चीनी कंपनियां काम करती हैं, वहां के लोग व वहां की सरकार इन कंपनियों व चीनी सेना के भीतरी संबंधों के बारे में अंधेरे में रहते हैं।
वियेतनाम के फुल ब्राइट विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस्टोफोर बाल्डिंग व लंदन के एक थिंक टैंक, हैनरी जैकसन सोसायटी की ओर से इस संबंध में एक स्टडी की गयी थी। इस स्टडी में अन्य देशों में काम कर रहे चीनी कंपनियो के अधिकारियों व कर्मचारियों के सीवी का अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन में जो निष्कर्ष आये, वो चौंकाने वाले थे। इस अध्ययन के अनुसार चीन की सबसे बड़ी टेलीकाम कंपनी हुआई (Huawei) के अधिकारी व कर्मचारियों के चीन की सेना व खुफिया संस्थाओं के साथ गहरे संबंध हैं। इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि हुआई कंपनी के कुछ कर्मचारी की पुरानी पृष्ठभूमि, चीनी सेना व खुफिया एजेंसियों के साथ है। अध्ययन में यह बताया गया है, कि इन कर्मचारीयों व अधिकारीयों द्वारा अन्य देशों के डाटा चोरी किये जाने की प्रबल संभावना है।
इस अध्ययन के दौरान चौकानें वाली जानकारी मिली। इस बात की जानकारी मिली कि हुआई कंपनी के एक बडे अधिकारी, पूर्व में चीनी मिलटरी विश्वविद्यालय में अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य कर रहे थे। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने उन्हें इस पद पर नियुक्ति दी थी। उसी व्यक्ति को हुआई कंपनी में बड़े पद पर नियुक्ति दी गई है। अध्ययन के अनुसार वह व्यक्ति पीएलए के स्पेश, साइबर व इलेक्ट्रॉनिक वार फेयर कैपेबिलिटीज के विषय में कार्य कर रहे थे। अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया है कि इस कारण परिस्थितिजन्य प्रमाण से स्पष्ट होता है कि चीन इस तरह से ऐसे अधिकारियों की मार्फत, उन्हें कंपनियों में नियुक्ति देकर, अन्य देशों में प्रवेश कर खुफिया जानकारी व अन्य डाटा हासिल कर रहा है।
इसी तरह युएस सेक्रेटरी आफ डिफेंस की ओर से “मिलिटरी एंड सीक्योरिटी डेवलपमेंट इनवाल्विंग द पीपुल्स रिपब्लिक आफ चाइना-2019” के संबंध में एक वार्षिक रिपोर्ट में चीनी कंपनियों से खतरे के संबंध में बताया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है, कि चीन में एक ऐसा कानून पारित किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि अन्य देशों में कार्य करने वाली चीनी कंपनियों को उस देश की जानकारी चीनी सेना को देनी होगी। चीन से निवेश के खतरों के संबंध में इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है ।
उपरोक्त बातों से स्पष्ट है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, चीनी कंपनियों व चीनी ऐप के जरिये न केवल आर्थिक लाभ हासिल करती है, बल्कि दूसरे देशों की महत्वपूर्ण जानकारियां भी हासिल करती है। वह इसे काफी चतुरता के साथ करती है, जिससे किसी को संदेह तक नहीं होता है।
लेकिन स्थितियां बदल रही हैं। चीन से कोरोना वाइरस की उत्पत्ति होने, तथा इसके पूरे विश्व में फैलने के बाद विश्व की दृष्टि चीन के प्रति बदली है। उसे संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। वास्तविक नियंत्रण रेखा में चीन के साथ तनाव के बाद भारत में भी स्थितियां बदली हैं। भारत सरकार ने भी डाटा चोरी के आरोप में 59 चीनी ऐप को प्रतिबंधित किये जाने का ऐलान किया है।
बताया जाता है कि वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व में चलने वाली केन्द्र सरकार ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए काम करने वाली कंपनियों को स्कैन करना शुरु कर दिया है। इसे पीएलए स्कैन कहा जा रहा है।
भारत में काम करने वाली चीनी कंपनियां, जिन्हें चीन से फंडिंग मिल रही है, वे सभी भारत सरकार के राडार पर हैं। भारत की अर्थ व्यवस्था को चीन के दखल से रोकने तथा देश की सुरक्षा के लिए भी भारत सरकार इस तरह के कदम उठा रही है। इन कंपनियों में चीनी सेना द्वारा किये गये निवेश आगामी दिनों में भारत को आर्थिक रुप से कमजोर करने की तथा सुरक्षा के लिए खतरा बनने की आशंका को ध्यान में रख कर यह कदम उठाये जा रहे हैं । भारत सरकार इस तरह की कंपनियों की सूची तैयार करने में लगी है। अभी तक सरकार ने सात ऐसी कंपनियों की पहचान की है। इन कंपनियों के जरिये चीन ने हजारों कोरोंडों रुपये का निवेश किया है। इसमें अलीबाबा, हुआई जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं।
उपरोक्त बातों से स्पष्ट है कि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी केवल युद्ध के जरिये चीनी विस्तारवाद के लिए काम नहीं करती है, बल्कि अन्य देशों में पूंजी निवेश करके उनकी अर्थव्यवस्था को कमजोर करने तथा वहां से इन कंपनियों के जरिये खुफिया व अन्य जानकारियां हासिल करने के लिए भी षडयंत्र पूर्वक कार्य करती है।
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के आम लोग चीन की इस भयंकर साजिश के बारे में पूर्ण रूप से अज्ञान हैं। वर्तमान में चीन के खिलाफ माहौल धीरे-धीरे बन रहा है और भारत सरकार चीनी कंपनियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का मन बना रही है। इससे भारतीयों में चीनी सेना की भंयकर साजिश के बारे में अज्ञानता खत्म होना शुरु हो रहा है। चीन की इस साजिश को लेकर सभी भारतीयों को अवगत कराने की आवश्यकता है।
चीन की दोगुली नीति का नजारा देखिए।
कॉर्प्स कमांडर लेवल की बातचीत के बाद भी चीन ने संवेदनशील स्थानों से सेनाओं की वापसी की प्रक्रिया को लगभग रोक दिया है। इस वक्त चीन ने यहॉं अपनी सेना की बड़ी तैनाती की हुई है और ये संख्या 40 हजार के करीब है।
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन पुरानी स्थिति में जाने को तैयार नहीं है। ताजा अपडेट के अनुसार चीनी सैनिक फिंगर एरिया से निकल नहीं रहे हैं। इससे पहले उन्होंने फिंगर-4 में अपने अस्थायी निर्माण को तोड़ा जरूर था, मगर फिंगर-4 से थोड़ा आगे फिंगर-5 की तरफ चले गये थे। लेकिन अब इसके पास आब्जर्वेशन पोस्ट बनाना चाहते हैं।
चीन ने अपने अंदरूनी इलाके में जंगी सामान भी जमा कर रखा है, जिसमें एयर डिफेंस सिस्टम भी शामिल हैं।