एनालिसिस
Bofors का जिन्न सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करेगी सीबीआई
पहले की सरकारें खुलेआम भ्रष्टाचार करने की जगह अपनी पार्टी आदि चलाने के लिए इन्हीं डिफेन्स डील का सहारा लेती थीं। इसके बाद से सरकारें इतनी निर्लज्ज होती चली गईं कि उन्हें कहीं से भी दलाली लेने और भ्रष्टाचार करने में कोई पेशानी नहीं हुुई।
65 करोड़ के इस (Bofors) तोप खरीद में कमीशनबाजी के खेल की पोल खोलने के नाम पर विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के प्रधानमंत्री बन गये, लेकिन उस घोटाले का हुआ कुछ नहीं। समय देखिए कि मात्र 65 करोड़ की खरीद में हुये घोटाले में संदिग्ध होने के नाते राजीव गांधी की प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई, लेकिन हजारों करोड़ के 2-जी घोटाले में कनी मोझी, ए0राजा मजे से बा-ईज्जत कोर्ट से बाहर आ गये।
सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के करीब 12 साल बाद पूरे मामले को फिर से खोलने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। क्या औचित्य है इसका? 12 साल तक सीबीआई कहॉं सोती रही? इसपर तो सीबीआई को ही कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।
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