विविध

Bhagat Singh अमर शहीद भाग-एक

Bhagat Singh सिर्फ १२ वर्ष के थे जब अमृतसर में जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ।

सभा में इकठ्ठे हुए सैकड़ो लोगों पर जनरल डायर ने फायरिंग का आदेश दे दिया।

अंग्रेज सिपाही देर तक निर्दोष लोगों पर गोलियां बरसाते रहे।

वहां से बच निकलने का कोई रास्ता नहीं था।

इस गोलीबारी में सैकड़ों लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे, मारे गए।

हजारों लोग घायल हो गए। बालक भगत सिंह के दिमाग पर इस घटना का गहरा असर पड़ा।

अगले दिन वह स्कूल से घर नहीं लौटे। वह जलियांवाला बाग पहुंचे।

Bhagat Singh ने निर्दोष देशवासियों के खून से सनी मिट्टी एक बोतल में भर ली।

घर लौट कर उन्होनें उस मिट्टी को हाथ में ले फिरंगियों से बदला लेने की कसम खाई।

Bhagat Singh की शुरूआती पढ़ाई बंगा के प्राइमरी स्कूल में हुई।

आगे की पढ़ाई करने के लिए वह लाहौर चले गए।

Bhagat Singh का बचपन उनके पिता और चाचा के पराक्रम का गवाह था।

गदर आंदोलन ने उनके मन पर गहरी छाप छोड़ी थी।

शहीद करतार सिंह सराभा उनके आदर्श बन चुके थे।

इससे देश की आजादी लडऩे के इरादे और मजबूत हुए।

१९२३ में पंजाब हिंदी सम्मेलन में भगत सिंह ने एक निबंध प्रतियोगिता जीती।

इससे पंजाब हिंदी साहित्य सम्मेलन के महासचिव प्रोफेसर भीम सेन विद्यालंकार सहित सभी सदस्य काफी प्रभावित हुए।

इतनी कम उम्र से ही भगत सिंह पंजाब के साहित्यिक कार्यों में रुचि लेने लगे। राज्य की समस्याओं पर बहस करते थे।

किशोरावस्था में ही भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया।

लेकिन उनका मन किताबों में नहीं लगता था।

पढऩे के बजाए उन्होंने क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में जानकारियां इकठ्ठी करनी शुरू की।

क्रांति के बारे में जानकारियां बढऩे के साथ ही इसमें शामिल होने की भगत सिंह की इच्छा और बढ़ती चली गई।

उन्होनें रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ बंगाल से संपर्क साधना शुरू किया।

जो उस समय क्रान्ति का मुख्य केंद्र था। इसके नेता सचीद्र नाथ सान्याल थे।

पार्टी की सदस्यता के लिए यह शर्त होता थी कि नेता द्वारा क्रांति से जुड़े कार्यो के याद किये जाने पर उसे घर छोडऩे के लिए तैयार रहना होगा।

भगत सिंह की दादी की इच्छा थी कि अब उनकी शादी हो जानी चाहिए।

उनके लिए उन्होंने लड़की भी देख ली थी। लेकिन शादी तय होने के दिन ही भगत सिंह घर छोड़ कर चले गए।

जाते-जाते घर वालों के लिए वह खत छोड़ गए थे, जिसमें लिखा था- मेरी जिंदगी का लक्ष्य देश की आजादी के लिए लडऩा है।

मैं, भौतिक सुख-सुविधओं में नहीं पडऩा चाहता।

मेरे उपनयन(हिन्दू धर्म में दीक्षा संस्कार समारोह )के मौके पर मेरे चाचा ने मुझसे एक पवित्र वचन लिया था, आज मैं उनसे वादा करता हूं कि मैं अपने आप को देश के लिए बलिदान कर दूंगा।

बाद में भगत सिंह कानपुर आ गए। यहां खर्च चलाने के लिए वे अखबार बेचते थे।

यहीं उन्हें प्रसिद्ध क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी के बारे में पता चला।

विद्यार्थी का अखबार प्रताप उस समय देश में आजादी के आन्दोलन की आवाज माना जाता था।

उन्होंने भगत सिंह को अपने प्रेस में नौकरी पर रख लिया लिया।

धीरे-धीरे भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह के संपर्क में आए और वह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए।

बाद में इस संगठन को समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष रूप देने के लिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद तथा अन्य सदस्यों ने इसका नाम बदल कर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया।

१९२६ में भगत सिंह, सुख देव, भगवती चरण वोहरा और अन्य साथियों ने समाजवादी विचारधारा के प्रचार,ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सीधी कार्रवाई की जरूरत को समझने और पार्टी के लिए युवकों की भर्ती करने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया।

१९२० में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो भगत सिंह ने सिर्फ १३ साल की उम्र में ही इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

उन्हें पूरी आशा थी कि गांधी जी एक दिन जरूर भारत को आजादी दिलाएंगे।

१९२२ में गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में एक जुलूस का आयोजन किया गया।

इस दौरान आंदोलनकारियों ने पुलिस की बर्बरता का जवाब देने के लिए २२ पुलिसकर्मियों को एक थाने में बंद कर आग लगा दी।

सभी पुलिसकर्मी आग में जलकर राख हो गए। इससे पहले कुछ इसी तरह की हिंसक घटनाएं बाम्बे(मुंबई)और मद्रास में हो चुकी थीं।

महात्मा गांधी इन घटनाओं से बहुत दुखी हुए,क्योंकि वह अहिंसा के समर्थक थे और बिना किसी मार-काट के आजादी पाना चाहते थे।

जबकि क्रांतिकारी हिंसा के रास्ते स्वतंत्रता हासिल करना चाहते थे।

गांधी जी दुखी होकर देश भर में चल रहे असह्योग आंदोलन को वापस ले लिया।

भगत सिंह इससे बहुत निराश हुए।

उनका मानना था कि सिर्फ २२ पुलिस वालों के मारे जाने के कारण आंदोलन वापस लेना अन्यायपूर्ण था।

उन्होंने कहा कि इन अहिंसा के समर्थकों ने क्यों विरोध नहीं जताया।

जब अंग्रेज सरकार ने सिर्फ १९ साल के क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा को बेदर्दी से फांसी पर लटका दिया था।

अहिंसा का तरीका भगत सिंह के समझ में बिल्कुल नहीं आया।

इसके चलते भगत सिंह का विश्वास अहिंसा और असह्योग आंदोलन से उठ गया।

उन्होंने तय कर लिया कि आजादी सिर्फ सशस्त्र आंदोलन से ही हासिल की जा सकती है।

भगत सिंह ने बाद में कार्ल माकर्स, फ्रेडरिक एंजल्स,व्लादीमिर लेनिन के विचारों का गहरा अध्ययन किया।

उनका मानना था, कि विभिन्न समुदायों में बंटी भारत की विशाल जनसंख्या का भला सिर्फ समाजवादी शासन में ही संभव है।

उन्होंने आयरलैंड, इटली और रूस के क्रांतिकारियों की जीवनी का गहराई से अध्ययन किया।

अध्ययन करने के साथ ही उनका यह विश्वास और पुख्ता होता गया कि युद्ध ही आजादी पाने का एक मात्र रास्ता है।

उन्होंने महसूस किया कि इसके लिए देश के नौजवानों में क्रांन्ति की भावना जगाना जरूरी है ताकि हर नौजवान के सीने में आजादी की आग धधक सके।

इस बीच भगत सिंह की गतिविधियां पुलिस की नजर में आ चुकी थीं।

पुलिस के जासूस हर वक्त उन पर निगाह रखते थे।

एक बार जैसे ही अमृतसर में ट्रेन पर सवार हुए, जासूस उनके पीछे लग गए।

जासूस की निगाहों से किसी तरह बचते-बचाते वह लाहौर पहुंचे।

ट्रेन के लाहौर पहुंचते ही पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और लाहौर फोर्ट जेल भेज दिया।

भगत सिंह की समझ में नहीं आया की उन्हें क्यों गिरफ्तार किया गया।

दरअसल,कुछ दिन पहले दशहरा समारोह के दौरान निकली शोभायात्रा पर किसी ने बम फेंक दिया।

जिसमें कई लोगों की मौत हो गई।

पुलिस को संदेह था की फेंकने वाले क्रांतिकारियों के साथ भगत सिंह भी शामिल था।

लाहौर जेल में भगत सिंह को बार-बार यातनाएं दी गईं। यहां तक कि उन्हें पीटा भी गया।

इसी बीच काकोरी कांड की जांच कर रहे अधिकारी भगत सिंह से मिले और घटना के सम्बन्ध में पूछताछ की।

हालांकि उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। आखिरकार Bhagat Singh पर दोष साबित नहीं किया जा सका और उन्हें छोड़ दिया गया। रिहाई के बाद खाली चारपाई पर बढ़े हुए बालों में ली गई भगत सिंह की तस्वीर जेल में उन पर हुए जुल्मों की गवाही दे रही थी।

देश में क्रांन्तिकारियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी।

बम बनाने की जानकारी हासिल करने के लिए Bhagat Singh कलकत्ता चले गए।

वहां उन्होंने अपनी जरूरत के लिए बम खरीदे। बम बनाने की तकनीक उन्होंने एक क्रांतिकारी जतींद्र नाथ दास से सीखी।

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