पंचतंत्र

कान भरने की कला-कहानी की कहानी पंचतन्त्र-7

पिछले अंक के भाग-6 में आपने पढ़ा कि……………
पर यह इतना समय साध्य काम था जिसकी अनुमति न तो मेरी भावी योजनाएं देती थीं। न ही प्रकाशन संस्थान दे सकता था। यह पुनर्रचना पाठकों को कितना संतोष दे पाती है यह नहीं जानता पर मेरी अपनी अतृप्ति तो बनी ही रहनी है।-भगवान सिंह।…अब इसके आगे पढ़िए भाग-7

कहानी की कहानी पंचतन्त्र

कहते हैं, पुराने जमाने में दक्षिण देश में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। उसका राजा था अमरशक्ति AmarSakti, वहां विष्णुशर्मा नाम के एक आचार्य थे। जो एक ऐसी पाठशाला चालाते थे जिसमें गधों को घोड़ा और घोड़ों को आदमी बनाया जाता था।

आजकल इस नगर का कोई अता-पता नहीं है। यह नगर जहां भी था, अपने जमाने में मशहूर इस बात के लिए था, कि वहां एक विद्वान और विद्वानों की आवभगत करने वाला राजा AmarSakti राज्य करता था।

महिलारोप्य नगर का यह राजा AmarSakti कवियों और विद्वानों को इतना पटाकर रखता था, कि वे उसका गुण गाते न अघाते थे। उन्होंने उसकी तारीफ के इतने पुल बांध रखे थे कि उनसे बदनामी की नदी तो क्या समुद्र तक को पार किया जा सकता था।

उनके गुणगान के कारण ही लोग मानने लगे थे कि दुनिया का कोई ऐसा गुण है ही नहीं, जो उस राजा में ना हो। इसी का दूसरा पक्ष यह था कि वे यह भी मान बैठे थे कि दुनिया की कोई बुराई उसे छू तक नहीं पाई है।

उस राजा का नाम अमरशक्ति था। अमरशक्ति AmarSakti जितना लायक राजा था उसके लड़के उतने ही निकम्मे राजकुमार थे। यह तो दुनिया जानती है कि सौ राजकुमारों में एक-दो ही लायक निकलते हैं।

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