साइबर संवाद

एम्स ने राम भरोसे छोड़ा

मोदी सरकार के मुखर पत्रकार को भी नहीं मिल पा रहा उचित इलाज।

अवधेश कुमार

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार को मलूत: भाजपा का समर्थक पत्रकार माना जाता है। फेसबुक पर उनके लिखे को सैकड़ों हजारों लाइक्स मिलते हैं। सैकड़ों में शेयर होता है इनका लिखा। अवधेश कुमार के पेट में प्राब्लम है। पेट का इलाज कराने एम्स गए तो कोरोना टेस्ट में पाजिटिव निकले। फिर उन्हें कोरोना वार्ड में डाल दिया गया।

एक दिन अचानक उन्हें एम्स वालों ने जाने के लिए कह दिया। अवधेश जी की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। सही कहा जाए तो अब वह भगवान भरोसे हैं। ऐसा वे खुद भी कह रहे हैं। सोच सकते हैं कि जब मोदी सरकार के इतने मुखर समर्थक पत्रकार को प्रापर इलाज नहीं मिल पा रहा है तो आम आदमियों को कोरोना काल में कोई दूसरा रोग हो जाए तो क्या ट्रीटमेंट मिलेगा?

अवधेश जी की कुछ पोस्ट्स पढ़ें और उनकी सेहत व मानसिक स्थिति का आंकलन करें। हम अवधेश जी के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं।

Awadhesh Kumar का ट्वीटर एकाउन्ट है: @Awadheshkum नीचे उनका खुद का ही लिखा है।

मृत्यु निश्चित है। 2003 में पत्नी कंचना के सड़क दुर्घटना में निधन के बाद से मृत्यु के लिए हमेशा मानसिक रूप से तैयार रहने का स्वभाव मैंने बना लिया। लेकिन शारीरिक कष्ट का क्या करें। कभी शराब नहीं पीया, खाने-पीने में अधिकतम संयम बरता। पिछले पांच वर्षों से एक्टिविज्म भी लगभग रुक गया। यात्राएं लगभग बंद हो गईं।

लेकिन पेट की बीमारी नहीं गई। हर पैथी आजमाया। पूरा समय दिया। डॉक्टरों की नजर में गंभीर बीमारी नहीं रही और मेरा कष्ट बना रहा, बढ़ता रहा। इसी हालत में काम करने और सक्रिय रहने की आदत हो गई इसलिए मित्र और परिवार भी मेरी गंभीर स्थिति नहीं समझ सके।

दुर्भाग्य देखिए कि काफी विमर्श के बाद एम्स में गैस्ट्रो विभाग के तहत भर्ती होने आया तो कोबिड पोजिटिव आ गया। फिर कोबिड वार्ड ट्रॉमा सेन्टर में कैद होना पड़ा। पेट का इलाज जहां के तहां रुक गया। अब क्या करें? 24 घंटे भय बना हुआ है कि यहां से निकलने के बाद घर जाऊंगा तो क्या करूँगा। अब पेट का इलाज कैसे होगा? मानसिक रूप से स्वयं को सांत्वना देता हूं। फिर कुछ समय बाद परेशान हो जाता हूँ। कुछ समझ नहीं आता। शरीर के कष्ट यानी पेट की बीमारी से मुक्ति चाहता हूं।

Awadhesh Kumar

मित्रों, ट्रॉमा सेन्टर ने रीलीज कर दिया है। कोविड का लक्षण नहीं होने पर रीलीज करके घर में क्वारंटीन होने को कहते हैं। लेकिन यहां से मेरी समस्या शुरू होती है। यहां पेट का इलाज नहीं कर रहे थे, लेकिन दर्द और दस्त रोकने के लिए नसों से दवाइयां चढा देते थे। यह घर पर नहीं हो सकता। भारी चिंता का विषय यही है कि अगर दस्त और दर्द बढ़ा तो क्या करेंगे।

कोविड के भय से ज्यादातर डॉक्टरों के क्लिनिक बंद हैं। नर्सिंग होम बंद हैं। अस्पतालों की प्राथमिकता कोविड हो चुका है। इस हालत में जब मेरा इम्यून पॉवर एकदम नीचे हो कोई भी अस्पताल और नर्सिंग होम खतरे से खाली नहीं है। कोविड सेंटर से निकलने के बाद कुछ दिनों तक कोई डौक्टर वैसे भी देखने को तैयार नहीं होता। भयावह स्थिति है।

संपर्क के डॉक्टरों से अगले दस दिनों के लिए दवा लिखने का आग्रह कर रहा हूं। ढाई महीने से सामान्य भोजन नहीं कर पाने के कारण बहुत ज्यादा कमजोरी है। ऐसे में ईश्वर के हवाले स्वयं को करने के अलावा कोई चारा नहीं है। तो सब कुछ ईश्वर पर है। सभी लोगों का फोन नहीं उठा पा रहा हूँ इसके लिए क्षमा करेंगे। कमजोरी के कारण बात करने में भी परेशानी होती है। नियति ने जो भुगताना तय किया है वो भुगतना है।

Awadhesh Kumar

मित्रों, अगले क्षण क्या होगा यह हम आप नहीं जानते। मैं काफी पहले से कोशिश कर रहा था कि मेरे पेट की समस्या नियंत्रण में रहे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। समस्या नियंत्रण से बाहर चला गया। पता नहीं आगे क्या होगा। लेकिन मैं यह पोस्ट अपने सारे मित्रों को आगाह करने के लिए लिख रहा हूँ जो राजधानी दिल्ली या ऐसे ही कोविड प्रभावित क्षेत्र में हैं।

आप शरीर की किसी भी समस्या से पीड़ित हैं तो आपके लिए अत्यंत विकट समय है। जितना अपने को बचाकर संभालकर रख सकते हैं रखिए। सरकारी से लेकर निजी सारी स्वास्थ्य सेवाओं पर कोविड हाबी है। स्थिति बिगड़ गई तो इलाज मिलना मुश्किल है। आपकी कुछ पहुंच हो सकती है। लेकिन जब आप स्वयं गिर जाएंगे तो पहुंच काम नहीं आएगा। पहुंच हो भी तो दौड़भाग के लिए उपयुक्त लोग चाहिए।

मित्रों में भी ज्यादातर फोन से सहयोग की कोशिश करेंगे, चिंतित होंगे लेकिन आपके पास पहुंचकर जितनी आवश्यकता हो उतनी देर तक सक्रिय रहने वाले अत्यंत कम होंगे। हो सकता है कोई न भी आए। प्राइवेट डॉक्टरों में ज्यादातर ने अपना क्लिनिक बंद कर दिया है। ज्यादातर नर्सिंग होम भी बंद हैं।

शुरूआत में कहां जाएंगे? कुछ ही डॉक्टरों बैठते हैं लेकिन उनमें भी ज्यादातर मरीज को निकट से देखने से बचते हैं। जिनका हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है उनमें हमारे बीच कितने लोग हैं जिनकी हैसियत बड़े अस्पतालों का खर्च वहन करने की है? मैंने कभी हेल्थ इंश्योरेंस नहीं कराया। इसी तरह अनेक होंगे। अनेक नान कोविड अस्पताल में भर्ती के लिए कोविड टेस्ट निगेटिव अनिवार्य कर दिया है।

आप इमर्जेंसी में अपने इलाज के लिए भागेंगे कि पहले कोविड टेस्ट कराएंगे? कोविड अस्पताल खतरे से खाली नहीं हैं। इमरजेन्सी विभाग में किस बेड पर किस बिमारी का रोगी था या है, आप नहीं जानते। निजी या सरकारी अस्पतालों के इमरजेन्सी विभाग में सुरक्षा और सैनेटाइजेशन न के बराबर है।

यह पोस्ट आप सभी को केवल आगाह करने के लिए है, डराने के लिए नहीं। वैसे जब विकट परिस्थितियां आतीं हैं तो हमलोग उससे जूझते ही हैं। नियति भी हमारी दशा–दुर्दशा निर्धारित करती है, पर सचेत रहिए।

मैं यह भी आग्रह करुंगा कि केवल अपने लिए ही नहीं अपने मित्रों, परिचितों, रिश्तेदारों में कोई बीमारी के संकट में आया तो आप कैसे, क्या और किस सीमा तक मदद कर सकते हैं। इसके लिए जरूर तैयार और चौकस रहिए। कहां उनको तुरंत बेहतर संभव इलाज के लिए भेजा जा सकता है, इसकी भी जानकारी और तैयारी रखिए। यह नहीं कि किसी का फोन आएगा तो हम आगे आएंगे। बीमारी की अवस्था में किस—किसको कोई फोन कर सकता है यह जरूर सोचिए।

Awadhesh Kumar

मेरे पूर्व के एक पोस्ट को जाने-माने पत्रकार और लेखक तथा मेरे मित्र Pankaj Chaturvedi जी ने शेयर किया था। फेसबुक पर ज्यादा नहीं रह पाता लेकिन खोलने पर सामने दिख गया। सारी प्रतिक्रियायें भी देखीं। पंकज जी, को विशेष रूप से धन्यवाद। सारे साथियों को धन्यवाद।

एम्स में यदि भर्ती हो गया होता तो पेट की मूल बीमारी की पहचान और उसके उपचार की दिशा में काफी प्रगति हुई होती। पर अभी कष्ट भुगतना है, इसलिए कोविड रिपोर्ट पोजिटिव आ गया। हालाँकि कोई लक्षण था नहीं इसलिए नियम के अनुसार आब्जर्व करके वहां से मुक्त कर दिया गया। कोविड वार्ड में रहने का खतरा ज्यादा था।

लेकिन समस्या आगे की है। पेट के रोग की पहचान और इलाज जरुरी है। कुछ डॉक्टर्स से संपर्क किया गया। कह रहे हैं कि दस दिनों तक कोई नहीं देखेगा। आंत यानी कोलोन में समस्या बता रहे हैं। बाहर सीटी स्कैन में Diverticulitis बताया गया था। लेकिन एम्स ट्रॉमा सेन्टर में मेरे दर्द और लगातार दस्त को देखकर सीटी स्कैन किया गया।

इसमें Diverticulitis नहीं आया। इससे इतना तो हुआ कि अंदर कोई घाव नहीं है। डॉक्टर ने कहा कि यह Diverticulitis है। इसके इलाज के साथ आगे कुछ और टेस्ट की जरूरत है। यह कहां होगा अभी तक समझ नहीं आ रहा है। पहले के डॉक्टरों द्वारा लिखी गई कुछ दवाइयां लेना शुरू किया और फिर दो अनजाने डॉक्टर से संपर्क हुआ, उन्होंने भी कहा कि दवाइयां ठीक हैं।

दवाइयां ले रहा हूँ ताकि दस्त रुका रहे एवं हल्का भोजन पचे जिससे चलने फिरने की थोड़ी ताकत आए। एकदम लिक्विड टाइप का आहार लेकर अपने को बचाए रखने की कोशिश कर रहा हूं।

अवधेश कुमार
(वरिष्ठ पत्रकार की वॉल से)

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