विविध

सचिन तेंदुलकर-मनोनयन का मजाक बनाते

सचिन तेंदुलकर की राज्यसभा में लंबे समय बाद मौजूदगी ने गैरहाजिरी से जुड़ी बहस को फिर छेड़ दिया है।

खासकर दो मनोनीत सदस्यों सचिन तेंदुलकर और रेखा की संसद में हाजिरी बहुत ही निराशाजनक रही है।

देश की सर्वोच्च संस्था के प्रति उनका यह भाव मीडिया और जनता की नजरों में चुभ रहा है।

ज्ञात हो कि सचिन 27 अप्रैल, 2012 को राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत किए गए।

राज्यसभा की 374 बैठकें आयोजित हो चुकी हैं।

लेकिन इतने दिनों में सचिन सिर्फ 24 बैठकों के दौरान ही सदन में मौजूद रहे।

सदन से गैरहाजिर रहने का यह खेल उन्होंने अपने मनोनयन के आरंभिक दिनों से ही खेलना शुरू कर दिया था।

उन्होंने 2012 के बजट सत्र में भी भाग नहीं लिया था।

जो कि उनके राज्यसभा सदस्य बनने के बाद का सबसे पहला संसद सत्र था।

इसके बाद वह सीधे 2012 में मानसून सत्र के दौरान ही सिर्फ एक दिन के लिए सदन में आए।

उसके बाद उस साल के शीत सत्र और आगामी 2013 के बजट सत्र के पहले और दूसरे, दोनों भागों से पूरी तरह नदारद रहे। 2014 में भी उनकी उपस्थिति का रिकॉर्ड दयनीय था।

शीत सत्र के दूसरे हिस्से, विशेष सत्र और बजट सत्र में पूरी तरह अनुपस्थित रहे।
दुख की बात है कि एक दूसरी सदस्य रेखा भी संसद की कार्यवाहियों के प्रति उदासीन नजर आ रही हैं।

वह भी 27 अप्रैल, 2017 को ही मनोनीत हुई थीं और तब से राज्यसभा की 374 बैठकें आयोजित हो चुकी हैं, जबकि इस दौरान वह सिर्फ 18 दिन ही सदन में मौजूद रहीं।

वह 2012, 2013 और 2014 में तो सिर्फ तीन-तीन दिनों के लिए ही सदन में नजर आई थीं। बीते मानसून सत्र में तो वह मात्र एक दिन के लिए ही सदन में आईं।

इससे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि पिछले पांच सालों में उन्होंने एक भी प्रश्न नहीं पूछा है।

रेखा के लाखों प्रशंसक जो उनकी बेहतरीन अदाकारी के कायल हैं, संसद के प्रति उनकी उदासीनता के चलते बेहद दुखी और क्षुब्ध हैं।

हालांकि राज्यसभा में मनोनीत अधिकतर सदस्यों की सदन में उपस्थिति का रिकॉर्ड निराशाजनक ही रहा है।

1950 के बाद से पृथ्वीराज कपूर, नरगिस दत्त, पंडित रविशंकर, एमएफ हुसैन, आरके नारायण और ऐसे अन्य कई दिग्गज संसद के उच्च सदन में मनोनीत होते रहे हैं।

इसी कड़ी में देश की एक अन्य मशहूर हस्ती लता मंगेशकर 1999-2005 के बीच राज्यसभा सदस्य रही थीं।

इन छह वर्षों में वह मात्र 11 दिन ही संसद में मौजूद रहीं। 2002 और 2003 में वह सिर्फ एक-एक दिन के लिए ही सदन में नजर आई थीं।

तेंदुलकर की उपस्थिति का रिकॉर्ड 2014 से ही बहस का मुद्दा रहा है।

यह पहली बार तब मुद्दा बना जब तीन साल पहले वह संसद के अहम बजट सत्र में भाग लेने के बजाय विजयवाड़ा में एक शॉपिंग मॉल का उद्घाटन करते नजर आए थे।

मीडिया में आलोचना से वह कुपित नजर आए।

और ऐसे बर्ताव किया जैसे उन पर सवाल उठाकर मीडिया ने कोई गुनाह कर दिया हो।।

उन्होंने कटाक्ष करते हुए कह भी दिया कि आजकल मीडिया हर चीज पर विचार परोसने लगा है?

ऐसी कड़ी प्रतिक्रियाओं के आईने में हमें मास्टर ब्लास्टर से कुछ सवाल पूछने की आवश्यकता है।

संसद में आपकी निराशाजनक उपस्थिति पर मीडिया को अपने विचार क्यों नहीं व्यक्त करने चाहिए?

आपको मीडिया से तब कोई समस्या नहीं हुई जब वह सालों तक आपको देश के महान आइकॉन के रूप में पेश करता रहा।

आपका गुणगान करता रहा, यहां तक कि आपके लिए भारत रत्न की राह को आसान बनाया।

जिसके सचिन तेंदुलकर कतई योग्य नहीं थे।

और राज्यसभा की सदस्यता मिलना सुनिश्चित कराया, लेकिन अब जब वह मर्यादित तरीके से संसद से आपकी गैरहाजिरी के मुद्दे को प्रकट कर रहा है।

तो आपको उससे दिक्कत पेश आ रही है? दूसरी बात, संभव है आप इससे ज्यादा परिचित नहीं हों।

सचिन तेंदुलकर को राज्यसभा सदस्य बनाने के लिए सरकार को पहले से तय संवैधानिक प्रावधानों में बाकायदा खींचतान करनी पड़ी थी।

क्या कहता है संविधान

संविधान का अनुच्छेद 80(1)(क) कहता है कि राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों की संख्या 12 होनी चाहिए।

और इनका मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा।

अनुच्छेद 80(3) कहता है कि मनोनीत सदस्यों को साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान होना चाहिए।

ऐसे में आप देख सकते हैं कि इस सूची में खिलाड़ी का उल्लेख नहीं है।

आप स्वयं को किसी भी सूरत में साहित्यकार, वैज्ञानिक, कलाकार या सामाजिक कार्यकर्ता नहीं बता सकते।

बावजूद इसके कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने लीक से हटकर सचिन तेंदुलकर को इस विश्वास से मनोनीत किया था।

आपकी क्रिकेट की छठा उस पर भी पड़ेगी और इससे 2014 के लोकसभा चुनाव में उसकी छवि चमक उठेगी।

बहरहाल कांग्रेस की आशाओं पर पानी फिर गया और उसे ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा।

अप्रैल 2012 में राज्यसभा में मनोनयन के बाद आपने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी।

और स्पष्ट है कि ऐसा अपने राज्यसभा सदस्य बनाने के लिए उन्हें धन्यवाद देने के लिए किया था।

एक राष्ट्रीय आइकॉन होने के नाते सचिन तेंदुलकर को यहां पक्षपात रहित आचरण करना चाहिए था।

चूंकि सोनिया गांधी ही असली मुखिया थीं। लिहाजा आपने सोचा कि सिर्फ उन्हें ही आभार प्रकट कर देना काफी होगा।

शायद इसीलिए लालकृष्ण आडवाणी, नीतीश कुमार या मायावती जैसे नेताओं से मिलना आपने जरूरी नहीं समझा।

हालांकि आपके समर्थक उन नियमों का हवाला देकर आपके कदम को जायज ठहराते रहे हैं।

जो कहता है कि कोई सांसद लगातार 60 दिनों तक संसद से गैरहाजिर नहीं हो सकता है।

और इस आधार पर वे तर्क देते रहे हैं कि वास्तव में आपने किसी संसदीय नियम का उल्लंघन नहीं किया है।

क्योंकि इस समय सीमा की समाप्ति से पहले ही कुछ देर के लिए सचिन तेंदुलकर सदन को अपनी झलक दिखा देते, जैसे सही में आप भगवान हों।

वहीं आपको मालूम होना चाहिए कि इससे न सिर्फ संसद, बल्कि संविधान निर्माताओं के प्रति भी आपकी नकारात्मक सोच परिलक्षित हो रही है।

राज्यसभा के लिए मनोनीत हुए एक पूर्व सदस्य जावेद अख्तर के अनुसार मनोनयन मैच में मिली कोई ट्रॉफी नहीं है।

जिसे आप घर लेकर चले जाएं और आपसे कोई सवाल भी न करे।

यह देश के 1.3 अरब नागरिकों के भरोसे पर खरा उतरने की जिम्मेदारी है।

|एक भारत रत्न प्राप्तकर्ता को संसद के प्रति इस तरह का भाव दिखाना प्रदर्शित करता है।

आप उस योग्य नहीं हैं जिस योग्य सचिन तेंदुलकर समझा गया।

संसद के प्रति आपके दृष्टिकोण से आहात

तमाम करोड़ों भारतीय, जो महान क्रिकेटर के रूप में आपको पूजते हैं, संसद के प्रति आपके दृष्टिकोण से आहत हैं।

सचिन तेंदुलकर को इस तरह मीडिया की नकारात्मक चर्चाओं में देखना सहन नहीं कर सकते हैं।

यदि आपके पास वक्त या इच्छा नहीं है तो आपको राज्यसभा की सांसदी से त्यागपत्र दे देना चाहिए।

ताकि लोगों की नजरों में भारत रत्न के रूप में आपकी प्रतिष्ठा और प्यार बरकरार रहे।

सचिन तेंदुलकर अपने सुख के लिए ही जीते हैं

वैसे तो सचिन तेंदुलकर अपने सुख के लिए ही जीते हैं। राज्यसभा और देश तो दूर की कौड़ी हैं।

यही बात अभिनेत्री रेखा पर भी लागू होती है?

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