फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद

मजदूरों की बिवाइयों से झाँकता राष्ट्रवाद !——

लेकिन इस कोरोना काल ने राष्ट्रवाद को क्षेत्रवाद में बदल दिया है। मजदूरों की हजारों किलोमीटर की यात्रा में उनके पैरो की बिवाइयों से राष्ट्रवाद खून बनकर बाहर निकल रहा है। मजदूर से बड़ा राष्ट्रवादी मिलना मुश्किल है, क्योंकि वह देश के किसी कोने में जाए वह उसे अपना ही घर समझता है। उसके लिए राज्यों की सीमाएं कोई मतलब नहीं रखती हैं। किंतु इस दौर में समाज और सरकार दोनों ने उसे पराया कर दिया है।

केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक कसमें खाती हैं कि वो मजदूरों और गरीबों की मसीहा हैं। लॉकडाउन में फंसे मजदूरों के लिए रोज नए ऐलान होते हैं। कभी खाते में पैसे, कभी खाना देंगे, फिर ट्रेन चलाने का ऐलान, फिर मुफ्त यात्रा की बात लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि मजदूर आज भी परेशान हैं। ट्रेनों में एक अदद सीट के लिएं जंग लड़नी पड़ रही है।

आन लाइन रजिस्ट्रेशन, मेडिकल, टिकट, बसों से सफर करने वालों की भी मुसीबतें हैं। नतीजा ये है कि कहीं-कहीं मजदूरों की बेबसी गुस्सा बनकर फूट रही है। सरकार ने खुद के लिए भी ये बचाव का रास्ता बना लिया। जैसे ये हमदर्दी का मामला है, जिम्मेदारी का नहीं। इस बात पर विमर्श तब अधिक तेज हुआ जब विदेशों से स्वदेशी लोगो को भारत लाया गया।

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।
Previous page 1 2 3 4Next page

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

sbobet

Power of Ninja

Power of Ninja

Mental Slot

Mental Slot