फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद
पावन पेशे की पतित राह
मुफ्तखोरी का घुन
पत्रकारिता का स्याह सच यही है। गिने-चुने पत्रकार ही इस बीमारी से बचे होंगे। सर्वहारा की पंक्ति में सुविधाभोगी वर्ग की यह हकीकत पेशे को पतित कर रही है। जब किसी मजलूम, मजबूर की बारी आती है तो हमें सिद्धांत याद आने लगता है, पर खबर किसी बड़े व्यक्ति से जुड़ी हो तो सारी मर्यादा भूल जाते हैं।
बड़ी खबर में भी हम नाम तक नहीं लिखते। पूरी कोशिश करते हैं कि माननीय की शिनाख्त न हो पाए। हैरानी तो यह होती है कि बड़ी से बड़ी खबर पढ़ने के लिए संपादक के पास समय नहीं होता पर माननीय की खबरों की 4-5 बार स्क्रीनिंग, मॉनिटरिंग होती है। संपादक जी को नींद तब आती है जब सुबह पार्टी का आभार व्यक्त करने के लिए कॉल आती है। तब उन्हें सन्तोष, शान्ति और सुखद अनुभूति होती है।
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